Sunday, May 5, 2024
हेल्थ

साक्षात्कार

मकस कहानिका अंतर्राष्ट्रीय अध्याय के सदस्य भारतीय मूल के दुबई निवासी आ.जय कृष्ण मिश्रा जी से उनके निजी जीवन, साहित्य एवं सामाजिक विषयों पर बीएनटी लाइव की प्रतिनिधियों प्रतिभा जैन और शिखा गोस्वामी ने खास बातचीत की।

प्रतिभा :सर,आपने अपने साहित्य के सफर की शुरूआत कैसे की ?
जे. के. : वैसे तो साहित्य के प्रति रुचि मुझे तभी से हो गई थी जब मैं पांचवी कक्षा का विद्यार्थि था ! विद्यालय में सुबह ९,३० बजे प्रार्थना का कार्यक्रम होता था और मुझे प्रार्थना गाने के लिए चयनित किया गया था ! प्रत्येक दिन विद्यालय में मैं प्रार्थना गाता था और हर कक्षा के बच्चे मेरे साथ सुर से सुर मिलाते थे ! बहुत ही अच्छा लगता था ! कहीं ना कहीं वो मेरे जीवन के अंदर एक बीज बनकर साहित्य के रूप मे निकलता रहा ! साहित्य का कोई भी कार्यक्रम ऐसा नहीं होता था ,चाहे विद्यालय में हो अथवा गाँव के किसी उत्सव भरे मंच पर, मैं अवश्य उसका हिस्सा होता था ! यही मेरे जीवन में कभी कविता तो कभी कहानी बनकर आयी जो कि मेरे जिंदगी में हर पल में शामिल हो गई !!

शिखा : सर, आपको साहित्य के सफर में किन किन परिस्थितियों का सामना करना पडा ?
जे. के.: साहित्य से लगाव इतना ज्यादा था क़ि परिस्थितियों का आता पता तक नहीं चला! हाँ कभी कभी डर अवश्य लगता था कि शायद बदलते सामाजिक परिवेश में कहीं मेरे साहित्य की यात्रा को कोई प्रोत्साहन न मिले ! परंतु ऐसा नहीं हुआ और यात्रा आज भी जारी है, शून्यता अभी भी परेशान करती है कभी कभी, लेकिन शिखर के ओर प्रयासरत हैं !

प्रतिभा : साहित्य के सफर से क्या क्या बारीकियां सीखी जीवन में ?
जे. के.: हर पल सीखता ही रहा ! साहित्य की सबसे बड़ी बात जो मैंने सीखा वो है उसकी सादगी, विनम्रता, आग्रह भाव और स्पष्टवादिता! हम अंदर और बाहर एक जैसे हैं ! कलम बोलती वही है जो दिल कहता है और चेहरे का भाव अभिव्यक्त करता है ! दोनों में तिल मात्र का भी अन्तर नहीं होता !
अभी बहुत कुछ सीखना बाकी है ! साहित्य एक महासागर है जिसका एक भी तिनका अभी हाथ नहीं लगा !

प्रतिभा : क्या आप बचपन से ही साहित्यकार बनना चाहते थे ?
जे. के.: ऐसा कभी सोचा तो नहीं था परंतु हाँ साहित्य से लगाव बचपन से ही था !

शिखा : आप अपनी निजी जिंदगी के बारे मे बताये?
जे. के. : मैं झारखंड के साहिबगंज जिला के अंतर्गत एक छोटा सा गाँव, हाजीपुर राजगाँव का रहनेवाला हूं ! परिवार में बचपन से ही मुलभुत सुविधाओं का गहन आभाव देखा था ! स्नातक करने के तुरंत बाद रोजगार की तलाश मे निकल पड़ा ! एक अच्छी नौकरी भी ईश्वर ने मुझे दी! नौकरी से साथ साथ पढाई बदस्तूर जारी रखा और स्नातकोत्तर एवं MBA की शिक्षा भी हासिल की ! लगभग ३० वर्षों से स्थायी रूप से अपने गाँव से बाहर हूं ! लगभग ६ वर्षों से विदेश मे कार्यरत हूं ! परंतु गाँव की मिट्टी और घर के आँगन से आज भी लगाव उतना ही है और आजीवन रहेगा !

प्रतिभा : वर्तमान मे आप क्या करते हैं ?
जे. के. : मैं एक निजी टेलीकॉम कंपनी में जनरल मैनेजर के रूप मे दुबई में कार्यरत हूं ! लगभग २५ देशों का दौरा बिज़नेस के सिलसिले में कार्यरत चुका हूं और इसलिए मुझे विभिन्न प्रकार के संस्कृति से नजदीकी तौर पर देखने समझने का अवसर प्राप्त हुआ है !

शिखा : आपका पसंदीदा लेखक और किताब कौन है ?
जे. के. : “फणीश्वरनाथ रेणु” को मैं काफी पसंद करता हूं और उनकी पुस्तक “मैला आंचल” मुझे बेहद पसंद है !

प्रतिभा : आपका कोई सपना जिसे पूरा करना चाहते है ?
जे. के. : ये बड़ा कठिन प्रश्न है ! बस मैं इतना कहना चाहता हूं कि साहित्य से ताउम्र जुड़ा रहूं ! अपने कर्म की साधना में जुटा रहुँ बाकी ईश्वर पर छोड़ दूँ !

शिखा : आप साहित्य के क्षेत्र में आगे क्या करना चाहते हैं ?
जे. के. : साहित्य को खासकर हिंदी साहित्य को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाना चाहूंगा ! मेरा दिल कहता है कि विदेश की कोई भी धरती हो हिंदी साहित्य को जानती हो समझती हो ! शेक्सपियर आपने सीमाओं की परिधि से बहुत आगे हैं और आज भी हमारा साहित्य उस स्तर तक प्रसिद्धि नहीं प्राप्त कर पायी है ! जीवन की लालसा को अपने स्तर से सफलीभूत करने का प्रयास करता रहूँगा !

प्रतिभा : आप मुलतः भारत के है लेकिन दुबई में रहते है इसका क्या कारण है ?
जे. के. : कर्मक्षेत्र का दायरा थोड़ा बढ़ गया था ! दायित्वबोध जो कि मुझे बचपन से ही हो चुका था वो समय के अनुसार अब ज्यादा बड़ा हो चुका था, उसका निर्वाहन करना था ! अवसर मिला और दुबई पहुंच गया ! इसका ये कतई ये मतलब नहीं कि मैं अवसरवादी हूं! हाँ इतना अवश्य था कि मेरे कार्यकुशलता का प्रभाव ही मेरे लिए अवसर पैदा किया जिसे मैंने स्वीकार किया !
लेकिन मैं निजीतौर पर इतना बताना चाहता हूं कि भारत के बाहर मैं भारतीय ही हूं! शायद कोई ऐसा त्योहार रहा हो जिसका हमने यहाँ भारतीय तौर तरीके यहाँ न मनाया हो ! दुबई में ४०% भारतीय हैं और आप कह सकते हैं कि यहाँ एक छोटा भारत बसता है !

शिखा : नव सहित्यकारो को क्या संदेश देना चाहते हैं ?
जे. के. : ऐसा माना जाता है कि साहित्य समाज का दर्पण है ! एक सभ्य सामाज का निर्माण साहित्य का लक्ष्य होता है ! इसे बरकरार रखना नव साहित्यकारों की जिम्मेदारी है !
आप स्पष्ट लिखें और अपने कलम से एक उन्नत समाज की रचना करें !

प्रतिभा : आपके प्रेरणा स्रोत कौन हैं !
जे. के.: मुझे अच्छी तरह याद है जब मैं पांचवी कक्षा में था तो मेरे ही गाँव और कुनवे के रिश्ते में हम उनको बड़े बाबूजी कहते थे अपनी कविता वाचन के लिए मेरे विद्यालय आये थे ! वे अंगिका भाषा मे लिखते थे और बाद मे उन्होने हिंदी मे भी बहुत सारी कविताओं की रचना की ! एक कविता का शीर्षक अभी भी याद है मुझे ” बिगुल फूंक दो ” !
मुझे उन्होने बहुत प्रेरित किया था बचपन मे !
और फिर मेरे मामा जी भी हिंदी मे लिखा करते थे ! उनकी रचनाओं ने भी मेरे दिमाग पर बहुत प्रभाव डाला !
बाद मे जैसे जैसे मेरी रूचि बढ़ी मुझे जय शंकर प्रसाद की
रचनाओ को पढ़ने मे आनंद आने लगा , देवदासी , इन्द्रजाल, चूड़ीवाली जैसे कहानी मुझे बेहद पसंद है ! मैं कहीं ना कहीं उनको ही साहित्यिक यात्रा का प्रेरणास्रोत मानता हूँ!!

शिखा : एक अहम सवाल आज के समय में नारी पुरुषों से हर क्षेत्र में कदम कदम मिलाकर चल रही है परंतु फिर भी नारी को अवहेलना का शिकार होना पड़ता है, इस पर आपके क्या विचार है?
जे. के. : वैसे तो भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति में नारी का स्थान पुरुष से ऊंचा है तभी तो हम , सीताराम, राधेश्याम लक्ष्मी- नारायण बोला करते हैं ! लेकिन समय के अनुसार सामाजिक कुरीतियों ने भी जन्म लिया और समाज पुरुष प्रधान हो कर रह गया जहां स्त्रियों के जगह पुरुषों की प्राथमिकता दी गई ! आज भी समाज में बच्चे अपने पिता के नाम से ही जाने जाते है!

लेकिन वक्त बदला है , स्त्रियों ने समाज के हर क्षेत्र में अपनी भागीदारी प्रमाणित की है ! वो किसी भी तरह से पुरुष से कम नहीं हैं ! हाँ ये बात अवश्य है कि समाज के एक बहुत बहुत बड़ा वर्ग अशिक्षित है जिसके वजह से वहां अभी भी नारियां उपेक्षित हैं ! समय आ गया है जब इनको भी बदलना होगा !