Monday, January 20, 2025
साहित्य जगत

दोहे

हाथ थाम तुमने किया मेरा प्यार कबूल।

अब निष्ठुर बन कह रही वह थी मेरी भूल।।

फूल समझ जिसको किया मैंने दिल से प्यार।
वही फूल अब शूल बन देता कष्ट अपार।।

जान बूझ जिसने किया जुल्म तुम्हारे साथ।
उस पत्थर दिल से करो मत अब कोई बात।।

तुमको अपने आप पर बहुत अधिक है नाज।
रहा सहा व्यवहार भी खत्म कर दिया आज।।

जब उसके दिल में नहीं तेरे प्रति है प्यार।
फिर उससे क्यों प्रेम का करते हो इजहार।।

डॉ. राम कृष्ण लाल ‘जगमग’