ग़ज़ल
उनको भूले *अब* ज़माने हो गये।
यादों के किस्से पुराने हो गए ।।
आह! फिर सिसकी मगर किस बात पर।
दो दिलों के दो ठिकाने हो गये ।।
शाख पर नज़रें टिकी सैयाद की ।
बुलबुलों के घर *विराने* हो गये ।।
चल रहे थे ज़िन्दगी की राह जो।
*मौत उनके आशियाने हो गये ।।*
गुनगुनाते थे कभी जो शौक से।
भूले -बिसरे वो तराने हो गये। ।
ख्वाबों *की* दस्तक पे जो आते रहे।
दूर जाने के बहाने हो गये ।।
*जुस्तजू में निकली है किसकी “सरोज”*
*जबकि अपने भी बेगाने हो गये ।।*
आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)