Wednesday, May 8, 2024
मनोरंजन

कला में संवेदनशीलता पैदा करने की ताकत है: शबाना आजमी

नयी दिल्ली। सिने अभिनेत्री शबाना आजमी का कहना है कि वह आशावादी प्रकृति की हैं और उनका मानना है कि कला के जरिये संवेदनशीलता पैदा की जा सकती है और अंतत: यह सामाजिक बदलाव में मददगार होगा। अभिनेत्री ने कहा कि यही कारण है कि उन्होंने काली खुही में काम करने का ​निर्णय किया। यह ​एक हॉरर ​रोमांच फिल्म है जिसका निर्देशन टी समुन्द्र ने किया है। यह फिल्म कन्या भ्रूण हत्या के इर्द गिर्द है। यह एक ऐसी कुरीति है जो भारत में अब भी मौजूद है। अंकुर, मंडी, खंडहर, फायर, गॉडमदर जैसी फिल्मों में दमदार अभिनय के लिये प्रसिद्ध शबाना आजमी की 2002 में आयी हॉरर कमेडी मकड़ी के बाद यह उनकी दूसरी हॉरर फिल्म है।

शबाना (70) ने कहा कि यह सरासर अपमानजनक है कि 21 सदी में भी देश में कन्या भ्रूणहत्या की कुप्रथा जारी है। इसका समाधान ही महिला सशक्तिकरण की दिशा में पहला कदम होना चाहिये। उन्होंने कहा कि कहा कि कन्या भ्रूण हत्या और शिशु हत्या हर तरफ मौजूद है और ऐसा महानगरों में भी हो रहा है और अब तक हमने इस तरफ उतना ध्यान नहीं ​दिया है जितना इस पर हमें ध्यान देना चाहिये था। उन्होंने पीटीआई को दिये साक्षात्कार में कहा, महिला सशक्तिकरण की शुरूआत कन्या भ्रूण हत्या पर प्रभावी रोक के साथ होनी चाहिये। जन्म लेने के अधिकार के साथ शुरूआत हो। कितना क्रूर, अन्याय एवं अस्वीकार्य काम है यह। हम पितृसत्तात्मक समाज में रहते हैं।

हम जन्म से लड़के को पुरुष का अधिकार जताने की शिक्षा देते हैं जबकि लड़की से बहुत सारे भेदभाव करते हैं। राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुकी अभिनेत्री ने कहा कि वह इस फिल्म में काम करने के लिये इसलिये तैयार हो गयीं क्योंकि निर्देशक समुन्द्र ने पहली बार सही जगह पर अपना घ्यान लगाया था। उन्होंने बताया कि लघु फिल्मों एवं वृत्तचित्र का लेखन एवं निर्देशन करने वाले समुन्द्र ने बेहद रोमांचक अंदाज में इसकी कहानी सुनायी।