Monday, January 20, 2025
साहित्य जगत

ग़ज़ल

स्वर्ग की सुखमयी छटा में हैं
राम जी पुष्प वाटिका में हैं
जिसको सुनते ही आँख भर आये
हम उसी प्रेम की कथा में हैं
आपको कुछ पता भी है इसका
आप कितनों की कल्पना में हैं
अंत इसका दिखाई देता नहीं
दुख मेरे लम्बी श्रृंखला में हैं
कल को तरसेंगे वो ज़मी के लिए
पाँव जिनके अभी हवा में हैं
हरीश दरवेश
बस्ती(उत्तर प्रदेश)