Saturday, May 4, 2024
संपादकीय

देश से भुखमरी व कुपोषण का खात्मा कब!

संपादकीय | हमारे समाज के संतुलित विकास के लिए यह बेहद आवश्यक है कि मानव का अच्छे ढंग से सर्वांगीण विकास हो, जिसके लिए प्रत्येक व्यक्ति का स्वस्थ होना बेहद आवश्यक है। इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को पोषित संतुलित भोजन की आवश्यकता होती है, लोगों को समय से संतुलित भोजन की इतनी मात्रा मिलती रहे कि वो शारिरिक रूप से स्वस्थ रहकर जीवन जी सकें। लोगों को संतुलित भोजन मिल रहा है या नहीं और विश्व में व्याप्त कुपोषण व भुखमरी के प्रति लोगों व सिस्टम में जागरूकता फैलाकर एवं इसे खत्म करने के लिए ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ जैसे सूचकांक बेहद सहयोगी होते हैं। क्योंकि जब तक सिस्टम में बैठे लोगों को यह जानकारी नहीं होगी कि भूखमरी व कुपोषण किस देश के किस क्षेत्र में है, तब तक उसका समाधान समय रहते संभव नहीं है। इसी उद्देश्य से हर वर्ष की तरह 16 अक्तूबर 2020 को ‘वैश्विक भुखमरी सूचकांक’ (GHI)- 2020 रिपोर्ट को जारी किया गया है, इस रिपोर्ट के अनुसार भारत 94वें पायदान पर है।

रिपोर्ट आने के बाद से ही हमारे देश में भुखमरी पर तेजी से राजनीति शुरू हो गयी है। देश के राजनेताओं के द्वारा समस्या का समाधान करने के लिए मिलकर सामुहिक प्रयास करने की जगह व समस्या का समाधान करने के लिए सकारात्मक सुझाव देने की जगह पक्ष-विपक्ष के द्वारा राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया है। इस रिपोर्ट की बात करेंं तो ‘वैश्विक भुखमरी सूचकांक’ विश्व स्तर पर अलग-अलग देशों के लोगों की भुखमरी की समीक्षा करने वाली एक बेहद विस्तृत वार्षिक रिपोर्ट है। जो ‘वेल्थहंगरहिल्फे और कन्सर्न वर्ल्डवाइड द्वारा तैयार की गई हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत अपने पड़ोसी देशों श्रीलंका, पाकिस्तान, बांग्लादेश और नेपाल से भी पीछे चल रहा है। श्रीलंका को लिस्ट में 64वां स्थान मिला है, नेपाल को 73वां स्थान मिला है, बांग्लादेश को 75वां स्थान मिला है, म्यामांर को 78वां स्थान मिला है, और आर्थिक रूप से खस्ताहाल पाकिस्तान को 88वां स्थान मिला है। वहीं चीन, बेलारूस, यूक्रेन, तुर्की, क्यूबा और कुवैत जैसे 17 देश भूख और कुपोषण पर नजर रखने वाले ‘वैश्विक भूख सूचकांक’ (जीएचआई) में शीर्ष रैंक पर हैं। यहां आपको बता दे कि ‘वैश्विक भूख सूचकांक’ या ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ एक ऐसी रिपोर्ट है जो विश्व स्तर पर, और देश के आधार पर कुछ बिंदुओं के आधार पर भूख को मापता और उसको ट्रैक करता है। ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ की उपरोक्त संस्थाओं के द्वारा हर वर्ष गणना की जाती है और इसके परिणाम को प्रत्येक वर्ष अक्सर ‘विश्व खाद्य दिवस’ 16 अक्टूबर पर जारी किया जाता है। इस रिपोर्ट को वर्ष 2006 में बनाना शुरू किया गया था, शुरू में अमेरिका स्थित ‘अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान’ (IFPRI) और जर्मनी स्थित ‘वेल्थहंगरहिल्फे’ द्वारा प्रकाशित किया गया था, बाद में वर्ष 2007 में आयरिश एनजीओ ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ भी इसका एक सह-प्रकाशक बन गया था। लेकिन वर्ष 2018 में ‘अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान’ (IFPRI) ने इस परियोजना में अपनी भागीदारी त्याग दी और ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ (GHI) केवल ‘वेल्थहंगरहिल्फे’ और ‘कंसर्न वर्ल्डवाइड’ की संयुक्त परियोजना बनकर रह गई।

इस रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां पर भुखमरी अपने बेहद गंभीर स्तर पर है। यह रिपोर्ट वैश्विक, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर बेहद व्यापक रूप से भुखमरी की स्थिति का व्यापक मापन करती है। इस रिपोर्ट के अनुसार हमारे प्यारे देश भारत का ‘वैश्विक भूख सूचकांक 2020’ में 107 देशों की सूची में 94वां स्थान है और वह भूख की बेहद गंभीर श्रेणी वाले देश के समूह में शामिल है जो हमारे देश की छवि के लिए ठीक नहीं है। इस रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश की 14 फीसदी आबादी अभी भी भयंकर रूप से कुपोषण का शिकार है। जबकि अगर हम स्टंटिंग की बात करें तो स्थिति बहुत ज्यादा ख़राब है। ताजा आंकड़ों के अनुसार पांच वर्ष से कम आयु के करीब 37.4 फीसदी बच्चे स्टंटिंग से ग्रस्त हैं। स्टंटिंग के शिकार बच्चों में कुपोषण के चलते उनकी कद-काठी अपनी उम्र के बच्चों से कम रह जाती है वो गंभीर कुपोषण का शिकार रहते हैं। हालांकि इस रिपोर्ट के अनुसार संतोषजनक बात यह है कि पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्युदर में पिछले कुछ वर्षों में धीरे-धीरे काफी सुधार आया है और वो वर्ष 2020 में घटकर 3.7 फीसदी पर रह गई है। जबकि बच्चों में वेस्टिंग की बात करें तो पांच वर्ष से छोटे करीब 17.3 फीसदी बच्चे अभी भी उसका शिकार हैं।

यहाँ ध्यान रखने योग्य बात यह भी है कि बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान के वर्ष 1991 से अब तक के आंकड़ों से पता चलता है कि ऐसे परिवारों में बच्चों के कद नहीं बढ़ पाने के मामले ज्यादा है जो आर्थिक व अन्य विभिन्न प्रकार की कमी से पीड़ित हैं। इनमें पौष्टिक भोजन की कमी, मातृ शिक्षा का निम्न स्तर और गरीबी आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं। इस क्षेत्र में कार्य करने वाले विशेषज्ञों के अनुसार देश में इस हाल के लिए खराब कार्यान्वयन प्रक्रियाओं, प्रभावी निगरानी की कमी, कुपोषण से निपटने का उदासीन दृष्टिकोण और बड़े राज्यों के खराब प्रदर्शन दोषी है। वैसे इस हाल के लिए हमारे देश में गरीबी व भारीभरकम जनसंख्या भी एक बहुत बड़ा कारक है।

यहाँ आपको बता दे कि पिछले वर्ष ‘वैश्विक भूख सूचकांक’ 2019 में 117 देशों की सूची में भारत 102वें पायदान पर था। वर्ष 2018 की रिपोर्ट में भारत 119 देशों की सूची में 103वें स्थान पर था। वहीं वर्ष 2017 में इस सूचकांक में भारत का स्थान 100वां था। वहीं वर्ष 2014 को जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार विश्व में दो अरब लोग भूख से पीड़ित थे, जिनकी संख्या में हर वर्ष लगातार वृद्धि हो रही है। वर्ष 2014 के जीएचआई में 120 विकासशील देशों की गणना की गई थी, जिसमें भारत 55वें पायदान पर था और 55 देशों मे गंभीर भूख की स्थिति पाई गई थी। लेकिन अब हमारे देश में तेजी से भुखमरी का स्तर बढ़ रहा है जो हमारे देश व समाज के हित में बिल्कुल भी ठीक नहीं है, सिस्टम के द्वारा समय रहते इस पर अंकुश लगाना आवश्यक है। सम्पूर्ण विश्व में बेहद तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के बावजूद भी आज हमारे देश भारत में गरीबी के चलते भुखमरी बेहद गंभीर समस्या बनी हुई है, हमारा सिस्टम अभी तक इस गंभीर समस्या का समाधान करने में नाकाम रहा है। एक वक्त की भर पेट रोटी खाने के लिए बहुत बड़े तबके को देश में रोजाना ना जाने क्या-क्या पापड़ बेलने पड़ते है, इसकी जानकारी हमारे देश के सिस्टम को चलाने वाले सभी ताकतवर कर्ताधर्ताओं को है, लेकिन फिर भी इस गंभीर समस्या का निदान नहीं हो पा रहा है।

आज हमारे देश में भूख से बेहाल लोगों के लिए किस तरह खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जाए, यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है। वैसे तो देश व दुनिया में एक तरफ़ तो ऐसे लोग की जमात हैं, जिनके घर में खाना खूब बर्बाद होता है और कूडेदान में फेंक दिया जाता है। वहीं दूसरी ओर ऐसे लोगों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है, जिन्हें एक समय का भोजन भी नहीं मिल पाता। वैसे मेरा मानना है कि जिस देश में बच्चों या बुजुर्गों को रोटी कपड़ा और मकान के लिए तरसना पड़े या भटकना पड़े, वहां चाहे कितना भी विकास हो जाये वो सब बेमानी है। रोटी, कपड़ा और मकान प्रत्येक इंसान की मूलभूत आवश्यकताएं हैं, जिनको उपलब्ध करवाना सरकार का नैतिक दायित्व है। लेकिन देश में आज भी मजबूरी वश बहुत सारे लोगों को कम कपड़े और खुले आसमान के नीचे गुजारा करना पड़ता है, जो हालात वैसे तो ठीक नहीं है लेकिन फिर भी कल्पनीय है, परंतु अगर किसी व्यक्ति या परिवार को भूखा से तड़पता हुए सोना पड़े तो वो स्थिति सभ्य समाज के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है और आम सक्षम लोगों की कल्पना से परे व बेहद कष्ट कारक है। परंतु यह भी कटु सत्य है कि हमारे देश में बहुत बड़ी आबादी आयेदिन भूखे पेट सोने के लिए मजबूर है, पोषण युक्त भोजन तो उसके लिए बहुत दूर की कौडी है। आज सबसे बड़ा सवाल है कि इस बेहद गंभीर समस्या का समाधान आखिर क्या है और देश में इस हालात के लिए आखिरकार जिम्मेदार कौन है। वैसे गरीबों के हित में यूपीए-2 की सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013’ को अधिसूचित किया गया था, लेकिन विचारणीय बात यह है कि फिर भी भुखमरी की स्थिति नहीं सुधरी। देश की सार्वजनिक वितरण प्रणाली के अंतर्गत लगभग 50 फीसद शहरी तथा 75 फीसद ग्रामीण आबादी को राज्य सहायता प्राप्त बेहद कम मूल्यों पर चावल, गेहूं और मोटा अनाज प्राप्त करने का हक प्रदान किया गया है। लेकिन फिर भी लोग भूखे हैं और सिस्टम में बैठे बहुत सारे लोग उनके नाम पर रोजाना भ्रष्टाचार करके बंदरबांट करने में व्यस्त हैं। इसी तरह ही देश में गर्भवती महिलाओं और शिशुओं के लिए भी पौष्टिक आहार उपलब्ध करवाने की विभिन्न योजनाओं का प्रावधान रखा गया। एनडीए की अंत्योदय अन्न योजना के नाम से सरकार हर वर्ष करोड़ों लोगों को सस्ती दरों पर अन्न उपलब्ध करा रही है। लेकिन फिर भी आज हमारे सिस्टम के कर्ताधर्ताओं के सामने सबसे ज्वंलत प्रश्न है कि गर्भवती महिलाओं और शिशुओं के लिए पौष्टिक आहार व गरीबों को भोजन उपलब्ध करवाने के नाम पर हर वर्ष करोड़ों रुपये सरकारी कोष से खर्च होने के बावजूद भी आखिर क्यों हमारा देश भारत कुपोषण और भुखमरी जैसी बेहद गंभीर समस्याओं को परास्त करने में लगातार अक्षम साबित ह़ो रहा है? सिस्टम में बैठे लोगों को आत्ममंथन करने की आवश्यकता है कि आखिर उनके द्वारा किये जा रहे प्रयासों में कमी कहां रह गयी है, जिससे हमारी व्यवस्था के इस लचर हाल को दुरुस्त करके देश से भुखमरी व कुपोषण को दूर करके देशवासियों का सर्वांगीण विकास किया जा सकें।