Sunday, May 19, 2024
व्रत/त्यौहार

रेशम की डोरी का नेह –रक्षाबंधन

प्रेम ईश्वर द्वारा प्रदत्त उपहारो में सबसे सुंदर उपहार हैं, प्रेम हर रिश्ते की आत्मा हैं।

भारत वर्ष में हर माह अपने अंक में कोई ना कोई त्योहार लिए आता हैं ,यह विशेषता सदैव से विश्व को आकृष्ट करती रही है। सावन मास भोले
का प्रिय मास माना जाता हैं। इस माह मे अनेकों खुबसूरत पर्व अपना महत्व रखते है मित्रता दिवस नाग पंचमी, सुहागिनों का पर्व हरियाली तीज और वही भाई बहन के पवित्र रिश्ते का सबसे खुबसूरत पर्व रक्षाबंधन भी इसी मास में आता है।


रक्षा बंधन का पर्व हिंदू पंचाग के अनुसार प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।
इस पर्व का वर्णन पुराणों मे भी प्राप्त होता है। भविष्य पुराण में वर्णित है कि जब एक बार देवो और असुरों का युद्ध हो रहा था तो असुरों ने देवो को पराजित कर दिया। इसी समय इंद्रदेव की पत्नी सची ने विष्णुजी से सहायता मांगी। तब विष्णु जी ने सची को सूती धागे का बना वलय दिया जो हाथ मे पहनाना था। सची ने उसी धागे को इन्द्र की कलाई में बांधा। इसके बाद वो विजयी हुए तभी से इस धागे का प्रचलन प्रारम्भ हुआ इसे रक्षासूत्र कहा जाने लगा, और पत्नियां युद्ध मे जाने से पहले इसे पति की कलाई में, बांधने लगी।

अत भविष्य पुराण के अनुसार यह त्यौहार केवल भाईबहन तक ही सीमित नहीं है।

दूसरा उल्लेख भागवत, एवं विष्णु पुराण में भी प्राप्त होता है।जब भगवान नारायण ने बलि को हराकर तीनो लोकों पर पूरा अधिकार कर लिया तो राजा बलि ने भगवान विष्णु को अपने ही महल मे रहने का आग्रह किया और वचन में बांध लिया। तो वे ‘सहर्ष मान गए परन्तु लक्ष्मी जी को यह बात पसंद नही आयी इसी के बाद, उन्होने बलि को रक्षासूत्र बाँध कर भाई बना लिया इस पर बलि ने उनसे मनचाहा वर मांगने को कहा तब लक्ष्मी जीने विष्णु जी को उनके वचन से मुक्त करो का वर मांगा तो बलि को स्वीकार करना पड़ा। तभी से राजा बलि ने माँ को अपनी बहन के रूप मे स्वीकारा।

तीसरी कहानी जो प्रचलित है वो इस प्रकार है- शुभ और लाभ दोनो को बहन की कमी बहुत खलती थी, दोनो ने गणेश जी से एक बहन की मांग की तो ऋद्धि सिद्धि की दिव्य ज्योंति से माँ संतोषी का जन्म हुआ।’ तभी से शुभ लाभ रक्षाबंधन मनाने लगे।

यम अपनी बहन यमुना से 12वर्षो तक मिलने नही गए। एक दिन दु:खी हो कर माँ गंगा को यह बात बतायी तो माँ गंगा ने यम को बताया की आपकी बहन आपको याद करती है और आपकी प्रतीक्षा करती है आपके आने का ।
तब यम अपनी बहन से मिलने गए यमुना ने ढेरों पकवान बनाए। यम ने उनसे वर मागने को कहाँ बोली आजका दिन भाई बहन के मिलन और स्नेह
के पर्व के रूप संसार मे प्रचलित रहे’ ‘तभी से रक्षाबंधन पर्व मनाया जाता है।
समय समय पर अनेको उदाहरण इतिहास मे प्राप्त होते है ‘सिंकदर की पत्नी ने राजा पुरु को राखी भेजी थी।
रक्षा बंधन का पर्व भाई बहन के अटूट रिश्तों का पावन पर्व है। यह पर्व चाहे कितनी ही व्यस्तता क्यों ना हों, चाहे कितनी दूरी क्यों
ना हो भाई बहन के एक बार फिर मिलने का खास अवसर बन जाता है।
आज दिखाने की आदत ने इस त्यौहार को भी नही छोड़ा। महंगे महंगे गिफ्ट आन लाइन राखी आदि ने इस पर्व को भी अपनी चपेट में ले लिया है।
भाई बहन का प्यार किसी उपहार का मोहताज नहीं होता । आपसी स्नेह और विश्वास ही इस डोर को खास बनाती है। रक्षा सूत्र प्यार से भाई की कलाई पर बहन बांध कर रोली असत से तिलक लगाकर आरती उतारने के बाद गुड़ से मुह मीठा करे एक दूजे का देशी पर्व है तो मनाने का अंदाज भी देशी होना चाहिए। गुड़ भेट देंगे
तो स्वास्थ्य के चार लाभ
भी जुड़े होंगे लेकिन चाकलेट चार बीमारियों को साथ लेकर उपहार मे आती है अत: इस बारे मे जरूर सोचें। पर्व को उसकी मर्यादा के अनुसार ही मनाए व्यर्थ के कुर्तक कर अपनी ही संस्कृति को ठेस ना पहुंचाएँ ।
एक ही आंचल के दोफूल होते है भाई बहन | विवाह के बाद बहन दूसरे घर चली जाती है शायद इस पावन रिश्ते को मजबूती से जोड़ कर रखने वाली यह रेशम की डोरी अनूठी है । ‘घर के कोने कोने मे भाई बहन की यादें बसी रहती है। दोनो के आसमान अलग, सोच अलग, उड़ान अलग मगर
भाई बहन का यह रिश्ता अनमोल, बेहद खास उतना ही जरूरी और पावन। इस रक्षाबंधन अपने रुठों को मनाइये बस एक रेशम की डोरी और हाथो से बनी मिठाई या गुड ले कर रिश्ते में मिठास भर दीजिए फिर देखिए तो फिर देर किस बात की चलिए पर्व मनाते है, पवित्र और पावन रक्षा बंधन । स्वादिष्ट घेवर, नमकपारे गुलाबजामुन का आनंद उठाते है।आइए इस बार फूलो और पत्तो से राखी बनाएँ और ईश्वर के साथ भाई को भी यही पर्यावरण प्रिय राखी
अपने मित्र वृक्षों को भी
राखी अवश्य बांधिए
उनकी रक्षा करने का संकल्प ले। इस रक्षा बंधन भाई बहन एक एक वृक्ष अवश्य लगाए कोई भी दो वह जरूर लगाइर।

आइए एक नयी शुरुझात करते है हर पर्व पर्यावरण को समर्पित सही अर्थों मे करते हैं।

भविष्य पुराण में वर्णित श्लोक आज भी पढ़ा जाता है। रक्षा सूत्र बांधते समय—-

येन बद्धो बलिराजा, दानवेन्द्रो महाबल
तेन त्वामपि बध्नामि
रक्षे मा चल मा चल ।।
जिस रक्षा सूत से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया। उसी सूत्र से मैं तुझें बांधता हूं। हे रक्षे (रखी) तुम अडिग
रहना। (तुम अपने संकल्प से कभी विचलित ना होना)
स्नेह की डोर बड़ी ही मजबूत होती है। हमारे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जी भी हर वर्ष रक्षाबंधन देश वासियो के साथ मनाते हैं।
सगे भाई बहन के अतिरिक्त भी अनेकों भावात्मक रिश्ते भी इस अनुठे पर्व से बँधे होते है जो देश धर्मजाति और देश की सीमा से परे होते हैं। गुरू अपने शिष्य
को रक्षा सूत्र बाँधते हैं तो शिष्य गुरु को । इस कामना के साथ कि भविष्य में वह ज्ञात ज्ञान को सामाजिक कल्याण के लिए भी प्रयोग करेगा। ऐसे ही पुरोहित और यजमान एक दूसरे के सम्मान की रक्षा करते हुए संस्कारो को पूर्ण कर सके।

इस पर्व से जो संस्कृति और संस्कार की कड़िया टूट गयी है उन्हें फिर से जीवित और
सुसंगठित किया जा सकता है। आइए समाज और राष्ट्र को उन्नत और खुशहाल एंव
स्वस्थ बनाए।
पर्व कोई भी हो उद्देश्य केवल एक है सामाजिक समरसता एवं सौहार्द बनाए रखना हमें इसकी यत्न पूर्वक रक्षा करनी ही होगी।
आइए इस रक्षाबंधन पर्यावरण को भी एक रेशम की डोरी नेह दें। राष्ट्र को भी एक राखी बांधे और उस से प्रेम करते हुए उसकी रक्षा का वचन ले और धरोहरों को सम्मान दें। रेशम की इस डोरी के स्नेह से चारों ओर स्नेह और खुशियां ही बिखराए।

स्वरचित मौलिक लेख
डाक्टर महिमा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश