Sunday, May 19, 2024
साहित्य जगत

मुंशी प्रेमचंद जी की जयंती पर विशेष हिंदी साहित्य के प्रकाश पुँज मुंशी प्रेमचंद

वाराणसी से लगभग चार किमी. दूर लमही गाँव में निर्धन कायस्थ परिवार में हुआ था। 31 जुलाई 1880 को जन्मे प्रेमचंद के पिता मुंशी अजायब राय और माता आनंदी देवी थे।
प्रेमचंद जी, जिनका वास्तविक नाम धनपतराय था। उनके समय में जब तकनीकी सुविधाओं का अकाल सा था, तब भी उन्होंने अपनी जिजीविषा से सफल लेखक, कहानीकार, उपन्यासकार ही नहीं वक्ता, संपादक और संवेदनशील साहित्यकार के रुप में अपने को स्थापित कर मिसाल बना दिया। आज यदि देश दुनिया उन्हें याद कर रही है, तो ये उनके लेखन, चिंतन और दृढ़ता कौशल का ही कमाल है।
प्रेमचंद जी की साहित्यिक अभिव्यक्ति जन सामान्य को केंद्रित उनकी भावनाओं, हालातों और दैनिंदनी की समस्याओं का यथार्थ उजागर करती थीं।
संक्षेप में कहा जाय तो यह कहना गलत न होगा कि उनकी कृतियां एक विशाल और विस्तारित वर्ग का प्रतिनिधित्व करती थीं।
मुंशी जी ने 300 से अधिक कहानियों के अलावा , 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल पुस्तक, हजारों पृष्ठ के लेख, संपादकीय, भूमिकाएं, पत्र आदि लिखे।
प्रेमचंद जी को साहित्य या वैचारिक सीख विरासत में नहीं मिला और न ही परिवार से कोई संबल। फिर भी उन्होंने बिना किसी प्रगतिशील माडल यि उदाहरण के कालजयी उपन्यास गोदान लिखकर अमरत्व हासिल कर लिया।
31 जुलाई 1980 को भारत सरकार ने उनकी जन्मशती पर 30 पैसे मूल्य का डाक टिकट जारी किया।गोरखपुर में जहां वे शिक्षक रहे, वहां के बरामदे में भित्तिलेख के अलावा , उनसे संबंधित वस्तुओं का संग्रहालय और प्रेम चंद साहित्य संस्थान के अलावा उनकी एक प्रतिमा भी स्थापित है।
आज 31.07.2022 को राजकीय इंटर कालेज बस्ती में उनकी प्रतिमा का अनावरण भी किया गया।
उनकी कृतियों का अंग्रेजी उर्दू अनुवाद तो हुआ ही, अनेक विदेशी भाषाओं में भी उनकी कृतियां लोकप्रिय हुईं।
उनका अधिकतर समय लखनऊ और बनारस में संपादन और साहित्य सृजन में व्यतीत हुआ।
हिंदी साहित्य का ये कुशल चितेरा, पुरोधा जलोदर रोग का शिकार हो 8 अक्टूबर 1936 को इस दुनियां से विदा हो गया।
अशेष यशकीर्ति, गौरव मुंशी प्रेमचंद जी को अनंत काल तक स्मरण किया जायेगा और साहित्यिक समाज को इसका गर्व हमेशा ही रहेगा।बस हम लोग उनको विस्मृत न करें।
शत शत नमन।

आलेख::
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921