Monday, May 6, 2024
धर्म

गुरू का सान्निध्य जिसको हो प्राप्त जाए उसे संसार का सबसे बड़ा सुख और वैभव मिल जाता है-डॉ महिमा सिंह

गुरु को हमारे सनातन धर्म और भारतीय जीवन दर्शन में ईश्वर से भी ऊँचा स्थान प्रदत्त हैं। सबसे पहला दोहा यदि ‘हम सभी को याद है गुरु के महत्व को लेकर तो वह है—

गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागो पाए ।
बालहारी गुरु अपने गोविन्द दियो बताए।।

अर्थात ईश्वर और गुरु दोनों ही आपके समक्ष खड़े हैं आप प्रथम किसको वंदन करेगे ,तो यह कहा गया है कि गुरु ही महान है क्योंकि गुरू ने ही तो बताया कि ईश्वर कौन है ।

गुरू का सान्निध्य जिसको हो प्राप्त जाए उसे संसार का सबसे बड़ा सुख और वैभव मिल जाता है। गुरू के दिखाए गए पथ से अपने जीवन को सार्थक सफल और उर्जा से युक्त बना पाते हैं। अतव सही पथ प्रदर्शक गुरु से अन्यत्र और कोई नहीं हो सकता ।गुरु के सामीप्य, प्रवचन, आर्शीवाद
अनुग्रह जिसको भी ये अनूठे रत्न मिल जाते है उसका जीवन कृतार्थता से भर जाता है क्योंकि गुरु के बिना न आत्म दर्शन संभव है न हीं परमात्मा का। इहलोक और उहलोक दोनों के बीच की कड़ी यदि कोई
जोड़ता है तो वह गुरू ही है।
गुरू का शाब्दिक अर्थ ही है बड़ा। हमारे पूर्वजों ने बहुत ही दूरगामी सोच रखते हुए गुरुपूर्णिमा को एक पर्व के रूप में मनाने का प्रचलन आरंभ किया होगा। गुरु पूर्णिमा पूर्ण तया गुरु को समर्पित पर्व है| भारतीय संस्कृति मे गुरु पूर्णिमा अत्यन्त ही पावन उत्सव रहा है। भारत में गुरु को सदा से ही सर्वोपरि स्थान दिया गया है। भारतीय मिट्टी ने गुरू को आम जन जीवन में ईश्वरीय रूप दिया है। गुरु का आशीर्वाद असंभव को भी संभव करने की शक्ति रखता है आइये जाने ये कब, कैसे शुरू हुयी ?

आषाढ़ मास की समाप्ति और श्रावण मास के आरम्भ की संधि को जो पूर्णिमा पड़ती है उसे आषाढ़ी पूर्णिमा, ब्यास पूर्णिमा या गुरू पूर्णिमा कहते हैं। अमावस्या से पूर्णिमा शुक्लपक्ष का जो विधान है उसमे प्रत्येक माह में 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष ।आज ही के दिन देवों के देव महादेव जी ने सम्पूर्ण शास्त्र वेदों की रचना कर जगतपिता ब्रह्मा जी को , माता पार्वती एंव समस्त देवताओं को सुनाया था। आज ही के दिन पुराणों के रचयिता वेदो का विभाजन करने वाले महर्षि वेद व्यास जी का जन्म हुआ था । अतः इसे व्यास जयंती के नाम से भी जाना जाता हैं।
आज ही के दिन राम और कृष्ण जीने भी अपने गुरुओ का पूजन किया था |
गुरु पूर्णिमा स्वयं की आत्मा को जानने की प्रेरणा का शुभ पर्व है।यह पावन पर्व गुरु और शिष्य के आत्मीय संबंधो को और प्रगाढ़ता प्रदान करता हैं ।काव्य की भाषा मे कहा गया है कि गुरु पूर्णिमा के चन्द्र जैसा और शिष्य आषाढ़ी के बादल जैसा हो तो सोने पे सुहागा। गुरु के पास यदि चाँद के जैसे जी गए तो आपके पास अनुभवो का अक्षय पात्र होता है।

इसलिए इस दिन गुरू का विशेष महत्व है। आप यदि गुरु की ओर एक कदम बढाएंगे तो गुरू
आपकी ओर हजार कदम बढ़ाते है ।
भारत में वेद ग्रंथों का भी यही परम आदेश हैं।
ऐसी मान्यता है कि हरिशयनी एकादशी के बाद सभी देवता चार माह
के लिए सो जाते हैं तो गुरु की शरण ही कल्याणदायी होती है अत: इन चौमासा जो कि वर्षा ऋतु भी होती है सभी ज्ञानी जन कही न कहीं ठहरते थे और यही पर धर्म और ज्ञान का उपदेश देते थे इसीलिए इस पावन मास को श्रावण ( सुनना) माह भी कहा जाता है। इस माह मे मानव सुनने से ज्ञान और पुण्य फल प्राप्त करता है । आगे चलकर सर्वोत्तम व्यवाहारिक शिक्षा देने वाले शिक्षक एवं आध्यात्मिक ज्ञान देने वाले गुरू कहे जाने लगे। शिक्षक निः सदेह अनेक हो सकते है परन्तु गुर सर्वधा एक ही होता है।
हमारे सनातन धर्म में गुरू मंत्र लेना ही जीवन
की सफलता मानी गयी हैं। गुरु आपके कान में -ज्ञान रूपी अमृतवचन बोलते हैं यह परम्परा आज भी जीवित है। गुरु मंत्र लेने के कुछ नियम होते हैं उसका पालन करने की स्थिति में ही गुरु मंत्र लिया जाता है। समाज में आपकी प्रथम पहचान माता पिता से होती है। वे जीवनदाता है परन्तु जीवन को सुसंस्कृत व सुंदर बनाने का अनूठा कार्य केवल गुरु ही कर सकते हैं।यदि ये कहा जाए की आज हमारी शिक्षण संस्थाएं अविघा ही बाँट रही है तो यह सही होगा क्यों कि आज डॉक्टर , वैज्ञानिक इंजीनियर
हमारे बीच तो हैं। सही है लेकिन क्यों कि वे ज्ञान नही सूचना का आदान प्रदान कर रहे हैं जिसके कारण विद्यार्थियो का
ज्ञान से दूरदूर तक वास्ता नहीं रह गया हैं।
आज सही ज्ञान के अभाव मे चरित्र निर्माण का पक्ष भी कमजोर है। चरित्र के बिना हम एक सुंदर समाज और राष्ट्र की कल्पना कर ही नही सकते ।
भारत को आज उसी गुरुकुल प्रणाली की आवश्यकता है हाँ उसमें कुछ नये प्रयोग जरूर शामिल किये जाने चाहिए।

गुरुकुल विद्यालय लखनऊ उत्तर प्रदेश इस दिशा मे सराहनीय प्रयास करता आ रहा है ।सरावती शिशु मंदिर के बाद यदि कोई विद्यालय हमारे बच्चो मे नीतिगत शिक्षा का बीज बो रहा है तो वह निःसंदेह गुरुकुल है।
यह मेरी निजी आँखो का देखा हुआ अनुभव है। विद्यालय में प्रतिवर्ष गुरु पूर्णिमा धूम धाम से उत्सव के रूप में मनायी जाती है, और सभी शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है सर्व श्रेष्ठ शिक्षक आदि अन्य उत्कृष्ठ पुरुस्कार उनके परिजनो और विद्यार्थियो के सम्मुख दिया जाता है। इस विद्यालय में कोई भी पर्व हो कोई भी उत्सव हो किसी भी हाल में बालीवुड का कोई गाना प्रयोग नही किया जा सकता है ।
ऐसी बहुत सी बाते इस विद्यालय को आज की अंधी दौड़ से अलग रखती है। यहां की प्राचार्य कल्पना जी ने अपने संपूर्ण जीवन के अनुभव विद्यालय को समर्पित समर्पित कर दिया है और नित नए प्रयास करती रहती है कि विद्यार्थियों को ज्यादा से ज्यादा कल्याण और लाभ पहुंचाया जा सके।
ऐसा ही एक अन्य विद्यालय है काशी में प्री नर्चर स्कूल । इस विद्यालय की प्राचार्या निधि कपूर इतनी मेहनती और अलग जीवट एवं सोच वाली है कि उन्होंने बच्चों के लिए एक आदर्श विद्यालय की स्थापना की है हर पर्व को यहां पर आचार्य बुलाकर पूजा के साथ उत्साह से मनाया जाता है बच्चों के साथ सरस्वती पूजन मे कागज कलम पुस्तक की पूजा भी की जाती है पर्यावरण से लेकर खेलकूद सभी क्षेत्रों में यह विद्यालय उत्कृष्ट कार्य कर रहा है।
पति के स्थानांतरण के कारण मैं विभिन्न शहरों में भ्रमण करती रहती हूँ एवं कई शहरों में प्रवास रहा आश्चर्य जनक है कि
दाक्षिण भारत में लोग गुरु पूर्णिमा क्या है? इसका महत्व क्या है जानते ही नहीं जब मेरे बच्चो ने उन्हें बधाई दी तो वे बोले आज क्या है है? वे अनभिज्ञ थे कि ऐसा भी कुछ होताहै ?
विविधता तो अच्छी है पर अपनी प्राचीन परम्पराओं और संस्कृति से अनभिज्ञता ही हमारे पतन का कारण बन रही हैं। आज जरूरत है सरस्वती शिशु मंदिर गुरुकुल विद्यालय, प्री नर्चर स्कूल काशी , नीरजा मोदी स्कूल जयपुर जैसे विद्यालयों की जो सही शिक्षा, नीतिगत शिक्षा दे रहे हैं ।
गुरु का महत्व सदा रहा है, और गुरु पूर्णिमा पर आइए इस बार हम सब ये शपथ ले कि हम सबने जो भी सीखा है या जानते है किसी को सिखाये मुफ्त में। विद्या का दान देने का संकल्प हम सब को लेना ही होगा यही विद्या के व्यवसायीकरण को रोक सकता है । यही सही गुरुदक्षिणा होगी हमारी भी आपकी भी ।

गुरु का सामर्थ्य सागर की ही तरह असीमित और गुण रुपी रवजानो से परिपूर्ण होता है।

चाणक्य ने चंद्रगुप्त, समर्थ रामदास ने छत्रपति शिवाजी और रामकृष्ण परमहस ने स्वामी विवेकानंद को खोजा था वैसे ही आप भी यदि योग्य शिष्य की श्रेणी मे अति है तो गुरू – स्वयं ही आपको ढूंढ लेंगे ।

परंतु आज का युग व्यापारिक युग बनता जा रहा है विद्या तो सबसे बड़ा व्यवसाय बन गयी है गुरू भी पहले जैसे बहुत कम रह गए है। हमारी जड़ो को ही खोखला किया जा रहा है।

आप स्वयं को तैयार तो राखिये कि आप गुरु दक्षिणा दे पाए। गुरु दक्षिणा से आप का तात्पर्य शायद केवल धन से होगा किंतु ऐसा कदापि नहीं है। गुरू
दक्षिण में सर्वप्रथम आपको अपने समस्त’, अहंकार, घमंड, ज्ञान,
अज्ञान सम्पूर्ण शक्ति व पद सब तत्काल तत्क्षण गुरु के चरणो में अर्पण करना होगा यही सच्ची और प्रथम गुरु दक्षिणा हैं।

यह आपको स्वयं तय करना है कि आपको कैसा शिष्य बनना है?
विवेकानंद जी ने गुरुवचन की पूर्ति लिए पूरे संसार में
अपने सनातन धर्म के प्रचार प्रसार का बीणा सहज ही स्वीकार किया । शिवा जी ने तो गुरू आज्ञा हेतु शेरनी का दूध निकाल कर लाए और दाक्षिणा रूप महाराष्ट्र को विजय कर गुरूको सौंप दिया |

क्या ये प्रेरक प्रसंग आप और आपके बच्चे जानते है ? जरूरत है सही पुस्तकें पढ़ने की आज से इस गुरू पूर्णिमा पर प्रण लीजिए की हर बालक को आयु के अनुसार आप उसे कोई अच्छी नैतिक शिक्षा से ओतप्रोत पुस्तक ही भेंट करेंगे और अगली बार मिलने पर उससे उस पुस्तक के विषय पर चर्चा अवश्य करें यह आपकी गुरु दक्षिणा होगी अपने गुरुओं को और राष्ट्र को।

गुरू कृपा से जुड़ी कुछ रोचक जानकारी ।

गुरू जिस धरा पर अवतरित होते है
वहाँ परमआनंद होता है ।
वहां के सब तामसिक दोष समाप्त हो जाते हैं ।

जिस जगह गुरू वास करते उस जगह देवी देवता पुष्प वर्षा करते हैं ।

जो व्यक्ति गुरू की सेवा पूजा करता है उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गुरू हर लेते है ।

गुरू के चरणो मे स्वर्ग होता है । जहां गुरू देव विचरण करते है उस जगह वास करने से तामसिकता का दमन होता है।

गुरू में (लक्ष्मी सरस्वती दुर्गा ) सभी शक्तियो का वास होता है ।
गुरू में सुर्य ,चन्द्र देवलोक पुर्ण ब्रह्माण्ड का वास
तेज़ होता है ।
. गुरू मंत्र मे वो शक्ति है जो कुडंलिनी जागरित कर सकती है समस्त रोगों को दूर कर शिष्य का कल्याण होता है।

गुरू मे ब्रह्म चेतना का वास होता है । किसी व्यक्ति को कुछ हो जाये तो गुरू से प्रार्थना कर लेने से दोष दूर हो जाते है।
गुरू का रोजाना सुबह शाम ध्यान करने से तीनों ताप भौतिक दैहिक मानसिक रोग दोष का नाश होता है

गुरू मंत्र हजारों रोगों की दवा है । इसके सेवन से असाध्य रोग मिट जाते हैं ।

जिस व्यक्ति का भाग्य सोया हुआ हो ,दुर्भाग्य से घिरा हो तो गुरू कृपा से उस व्यक्ति का सोया हुआ भाग्य खुल जाता है ।

गुरू ही महान विद्वान धर्म रक्षक ईश्वर का रूप अवतार होते है ।

. समर्थ गुरू विरले एक काल खंड में एक ही होते है।
गुरू मंत्र का जाप करने से नौ ग्रह शांत रहते हैं ।
। जो ध्यान के साथ करता है उनको शत्रु और अन्य दोषों भी से छुटकारा मिलता है
हे गुरूदेव आप अनंत ! आपके गुण अनंत ! इतना मुझमें सामर्थ्य नहीं कि मैं आपके गुणों का बखान कर सकूं ।

हम करें राष्ट्र आराधन तन से मन से धन से ।
हम करें गुरु का वंदन मन से तन से धन से।
गुरु मेरी पूजा गुरु मेरा जीवन गुरु के चरणों में ही मेरा बैकुंठ धाम ।
गुरु से बढ़कर कोई और न दूजा
गुरु को वंदन करती हूं !
गुरु आशीष से जीवन हुआ सुगंधित चंदन।

शब्द मेरे मीत
डाक्टर महिमा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश