Saturday, June 29, 2024
साहित्य जगत

ग़ज़ल

खुले आसमां के तले मिलन हो गई,
अंधेरी रातों में चमकती चांदनी खिल गई।
रास्ते में अकेले मुसाफ़िर को साथ मिला जो,
देखते देखते ही मंजिल क़रीब मिल गई।

कोशिश भी थी और पाने कि जिद हो गई,
जो नजरों में झलकती नहीं थी कभी वो सामने ही आज खड़ी हो गई।
मैंने जिसको स्वप्न में भी देखा नहीं कभी,
वो हकीकत में हृदय से रूबरू हो गई।

ख़ुदा के गवाही में अनजाने से मुलाक़ात हो गई,
जैसे सूखे कुंए में पानी की बरसात हो गई।
मरुस्थल के रेतो में छा गई है,
प्रेम के संसार में मुझसे मोहब्बत की शुरुवात हो गई।

खुले आसमां के तले मिलन हो गई,
अंधेरी रातों में चमकती चांदनी खिल गई।
रास्ते में अकेले मुसाफ़िर को साथ मिला जो,
देखते देखते ही मंजिल क़रीब मिल गई।

आशीष प्रताप साहनी
भीवा पार भानपुर बस्ती
उत्तर प्रदेश 272194
8652759126