Tuesday, July 2, 2024
साहित्य जगत

आजादी का अमृत महोत्सव

आजादी मेरी नज़र में”
आजादी का महत्व प्रत्येक व्यक्ति के लिए पृथक-पृथक हो सकता है। किसी को मनपसंद वस्त्र पहनने की, किसी को शिक्षा की, मिल जाए तो वह उसी मे खुश क्योकि बंधन किसी को भी नही भाता हैं।
आजादी मेरी नजर मे जीवन के प्रतिक्षण को निष्पादित करती है। मै कुछ भी लिखने को स्वतंत्र हूँ, अपने विचारों को ‘व्यक्त करने से भयमुक्त हूँ।
यह मेरी आजादी का अत्यन्त मनभावन पक्ष है। यह मुझे आत्म सम्मान, आत्म संतोष तो प्रदान करती ही है वही एक ओर मुझे भयमुक्त भी बनाती है । राष्ट्र के लिए समर्पित होने के लिए मैं आजाद हूँ ।
आजादी को सही अर्थों मे आज भी आत्मसात करने का भरसक प्रयत्न कर रही हूँ। आजादी है मुझे स्वच्छंद विचरण की देश – विदेश में,त्योहारों के रीति रिवाज को मनाने की, देश की धरोहरों का सम्मान करने
की। प्रभात फेरी की आवाज ..सुन कर हर्ष से उन्हें सम्मान देने मे आत्म संतोष की अनुभूति की ।
मेरी आजादी मेरा परमानन्द है जो मुझसे कोई छीन नही सकता।
महापुरुषों को उनके बलिदान के लिए उन्मुक्त कंठ से
स्मरण करना और अपने आसपास के लोगों को उनसे परिचित करवाना मेरी आजादी का अटूट हिस्सा है। महापुरुषों ने सबकुछ बलिदान किया है मेरी आजादी के लिए इसलिए मेरे लिए यह एक अनवरत
जिम्मेदारी है कि उनके सपनों के भारत के लिए सजग रहें प्रयत्नशील रहे । यही उन्हें सच्ची श्रद्धाजलि होगी ।
समूह रक्षा से ही मेरी भी रक्षा संभव है यह विचार
प्रवाह शील बनाना होगा | अभी भी बहुत कुछ करना बाकी है ।मै बिना भय के यह प्रयास करती रहूंगी कि मेरे आसपास मैं किसी एक की भी सहायता कर
सकूँ या गलत करने से रोक सकूँ तो यहीं मेरी आजादी है जो मुझे अतिप्रिय है। मेरी आजादी बनाती है शशक्त और सुसंस्कृत मुझे कुछ अच्छा करने एवं कुछ अच्छा सोचने के लिए।
‘कुछ तो जरूर बदल पाऊँगी अच्छा कर पाऊँगी यही विचार लिए आजादी को मैं गर्व से शिरोधार्य कर मै उन्मुक्त पंक्षी सी विचरती हूँ। आजादी को पूर्णतया
पोषित पल्लवित करने के लिए थोडे बंधन भी आवश्यक है जो आजादी को सही अर्थों मे दिशा और गति दें सके। मापदण्ड से ही कतिपय हम
उसको सुचारू रूप से चला सकते है पूर्ण आजादी तो सर्वप्रिय है, पर कुछ बंधन भी जरूरी हैं ,वरना आजादी दूषित हो जाएगी जैसे –आज यह विचार लिखने
को मै स्वतंत्र हूँ परन्तु अपशब्दन लिखने का बंधन मुझे सभ्य और सुशील बनाता है । देश से बाहर जाने को मैं आजाद हूँ पर पासपोर्ट का बंधन उसको मूर्त रूप प्रदान करता है तो मेरी आजादी मुझे प्रिय है और वह सच्चे अर्थो में तभी फलित है जब वह कुछ बंधनों का मान रखते हुए पल्लवित हो ||
सम्मानपूर्वक साकार भाव से ही आजादी पल्लवित अंकुरित हो सकती है नीजी जिम्मेदारियां आवश्यक है। मेरी आजादी तभी सही है जिससे मेरा और राष्ट्र दोनों का कल्याण संभव हो । कदाचित तभी आजादी की अमृतधारा चँहुओर निर्बाध निर्विरोध प्रवाहित और सुभाषित , सुवासित हो सकेगी और आजादी की गौरव गान गाथा का प्रकाश संपूर्ण पृथ्वी पर पहुँच सके। मेरी आजादी मेरी गौरव पूर्ण जिम्मेदारी ।

डाक्टर महिमा सिंह
लखनऊ उत्तर (प्रदेश)