Monday, July 1, 2024
साहित्य जगत

“गुलमोहर की छांव में”-पुस्तक समीक्षा

*विधा: ग़ज़ल संग्रह*
*लेखक: डॉ.घमंडी लाल अग्रवाल*
*प्रकाशन: साहित्यभूमि- (प्रकाशक एवं वितरक)*
*एन- 3/5 ए, मोहन गार्डन*
*नई दिल्ली-110059*
*प्रथम संस्करण: 2022*
*मूल्य: 395.00*
*पृष्ठ संख्या: 112*

एक चुंबकीय आकर्षण है, इस शीर्षक – *”गुलमोहर की छांव में”* नाम से ही ऐसा प्रतीत होता है। मानों जीवन की तमाम झंझावातों एवं समस्याओं से निजात मिल गया हो।पल भर को ऐसा लगता है, जैसे गुलमोहर की छांव में एक सुकून भरी राहत की सांस ले, ली हो। तपती रेत से जीवन को झरनों की ठंडी फुहार से मन आनंदित हो उठा हो। सागर की लहरें हिलोरें लेते हुए तन मन भिगो गईं हों। एक असीम शान्ति और सुकून दे जाती है। यह निश्चित रूप से विचार करने योग्य है कि जब शीर्षक का नाम सुनकर इतनी सुकून और शान्ति मिलती हो, तो इस ग़ज़ल संग्रह के हसीन गलियारों से गुजरते हुए अतीव आनन्दानुभूति होना तो लाज़मी है।

मानव जीवन तमाम झंझावातों, समस्याओं और विसंगतियों से भरी पड़ी है। ऐसे में मनुष्य को शान्ति,सकून एवं चैन और राहत की दरकार होती है। गज़लकार डॉ .घमंडी लाल अग्रवाल जी का यह संग्रह प्रेम की फुहार से सिंचित करती है, तो मां की स्नेहिल लोरियों सी थपकियां देने वाली है, रिश्तों के मखमली एवं प्रेमिल अहसास हैं तो , रिश्तों के कसैलेपन का कड़वा स्वाद भी।मिलन का परमसुख है तो विछोह का दर्द भी। ग़ज़ल संग्रह को कर कमलों में स्थापित कर जब आप उसके पृष्ठपथों के पथिक बनेंगे तो आप को ऐसा जान पड़ेगा कि पथ में मखमली, कंटीली, झाड़ियों, उपवनों, तालाबों आदि से गुजरने के अहसासों की अनुभूति सी प्रतीत होगी। जीवन सीढ़ी पर कदम दर कदम बढ़ते हुए अनुभवों के सुखद, दु:खद, हास्यास्पद, करुणात्मक, व्यंग्यात्मक एवं पीड़ादायक इन सभी पड़ावों को पार करने की अनुभूति होगी। कहीं हृदय आनंदाविभोर हो उठेगा तो कहीं हृदयविदारक क्रंदन कर उठेगा। भावनाओं की भरी पोटली है यह संग्रह। अमानवीय व्यवहार से व्यथित है, कहीं तो कहीं मानवतावादी संदेशों के संवाहक। शब्दों की सहजता, सरलता एवं सरसता से तमाम भिन्न परिस्थितियों तथा प्रेमिल अहसासों के छुअन से सराबोर करता यह संग्रह आप सभी को मनभावन अवश्य ही प्रतीत होगा।

आप एक गम्भीर गद्यकार होने के वावजूद, एक कोमल हृदय के कवि, गीतकार,शायर एवं ग़ज़लकार भी हैं।
साहित्य जगत में आपका विशेष योगदान एवं स्थान है। आप को अनेकों राज्यों से पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त हो चुके हैं।
कुछ अशआर आप के इस प्रकार है-

चला था मैं अकेला ही चला था।
न मंजिल थी ना कोई कारवां था।।

नियोजित अथवा अनियोजित तरीके से जब कोई पथिक अपना पथ प्रदर्शक स्वयं ही होता है तब वह नितांत अकेला होता है। उक्त पंक्तियों में इसी जिक्र किया है ग़ज़लकार ने।

इसी प्रकार- हार पर जीत की संभावनाएं दिख पड़ती हैं यदि हौसला हो तो।

कभी तो हार की भी जीत होगी।
बंधाए धीर रखता हौसला था।।

भाईयो के दिलों के साथ घर-आंगन के बंटवारे को लेकर अपनी पीड़ा को इन्होंने कुछ इस प्रकार व्यक्त किया है-

हुआ मतभेद जब दो भाईयों में।
दिलों के साथ आंगन भी बंटा था।।

संग्रह के पांचवें ग़ज़ल में ग़ज़लकार ने अतिशय पीड़ा को व्यक्त करते हुए अपने शब्दों की अभिव्यक्ति कुछ इस प्रकार से किया है-

चन्दन पाने को सर्पों से यारी की।
इम्तिहान की बच्चों ने तैयारी की।।

मन में बने हुए पीड़ा के तहखाने। अंधेरों पर मुस्कानों की असवारी की।।

क्या कर लेगा सावन का मौसम आ कर।
तहस -नहस जब माली ने फुलवारी की।।

हृदय को हिलोरित करतीं कुछ पंक्तियों का दृष्टावलोकन करें-

रहा जो दीप जलता आंधियों में।
उसी का जिक्र आया सुर्खियों में।।

कुछ मार्मिक चित्रण इस प्रकार किया है,जो कि उर को आंदोलित करने में सक्षम हैं-

उठेंगे हाथ दर्जन भर लपकने।
उछालों रोटियां कुछ झुग्गियों में।।

वर्तमान युग जो कि पूर्णतः मशीनी और डिजिटल हो चुका है। असंवेदनशीलता का वर्णन देखें-

लिखे है कौन अब दिल की कलम से।
नहीं अपनत्व झलके चिट्ठियों में।।

इंसान के भीतर से मासूमियत खत्म होती जा रही है,उसी जिक्र इन्होंने चंद अशआर में किया है-

बच्चों सा रूठना -मनाना जब आ जाएगा।
रंग नया-सा इस जीवन में तब छा जाएगा।।

दुनिया के आप तब तक नहीं हो सकते जब तक कि दुनिया के रंग में ना रंग जाएं- इन्हीं विचारों को व्यक्त करते हुए कुछ लफ्ज़-

जब से सीखी दुनियादारी।
ये दुनिया हो गई हमारी।।

आत्ममंथन कर पिछली गलतियों को सुधारा जा सकता है-

दो घरी खुद से मुलाकात की जाए अब तो।
ठीक बिगड़ी हुई हर बात की जाए अब तो।।

सभी की सभी ग़ज़लें हृदय स्पर्शी बन पड़ी हैं। पढ़ने वाले को अपनी आप बीती सी प्रतीत होती है।

वो जिसे प्यारा सभी का ग़म रहा।
स्वयं की खुशियों में शामिल कम रहा।

इसी प्रकार चंद अशआर देखें-
दर्द ने दिल में लिखी चौपाइयां यहां।
शायरों को भा गई तन्हाईयां यहां।।

छांव थी तो था नहीं चर्चा कहीं इनका।
धूप खिलने पे दिखीं परछाईंया यहां ।

संदेशात्मक एवं सीख देती ग़ज़लें आप की-

संस्कार की पौध लगाएं।
बच्चों को तैयार करें कुछ।।

आप की ग़ज़लें मात्र व्यक्तिवादी न होकर परिवारवादी, समाजवादी और विश्वव्यापी हैं।

शब्दों को क़रीने से संयोजित कर ग़ज़लों के रूप में ढ़ालना घमंडीलाल अग्रवाल जी के ही बस की बात है।
ईश्वर से मेरी प्रार्थना है कि इसी प्रकार आप ग़ज़ल सृजन करते रहें। साहित्य के क्षेत्र में अपने तमाम विधाओं में सृजन करते हुए साहित्य जगत को समृद्धि प्रदान करते रहें।

मेरी ओर से आप को अनंत बधाई एवं शुभकामनाएं।

आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)