Tuesday, May 7, 2024
विचार/लेख

हमें अपने सिस्टम में महिलाओं को काम करने के लिए एक स्वच्छ वातावरण देना होगा-ई इमरान लतीफ

जब जब बात महिला सशक्तिकरण की होती है तब तब मैं महिलाओं की वास्तविक सामाजिक स्थिति की विवेचना करने को मजबूर हो उठता हूँ। आज हर तरफ महिलाओं की सफलता का गुणगान किया जा रहा है। ये बात अपनी जगह बिलकुल दुरुस्त है कि अधिकांश क्षेत्रों में कुछेक महिलाओं ने सफलता के परचम लहराएँ हैं लेकिन उनकी इस सफलता को आधार मानकर पूरे महिला जगत की वास्तविक परिस्थिति का सही आकलन करना कत्तई न्यायसंगत नही है। लेकिन बालीवुड अभिनेत्रियों, चंद महिला राजनेताओं, कुछ कंपनियों के बडे़ अधिकारियों व सरकारी पदों के शीर्ष पर विराजमान महिलाओं को दिखाकर, महिला सशक्तिकरण कहकर वर्तमान सामाजिक तंत्र स्वयं का महिमामंडन किये जा रहा है। चंद महिलाओं को दिखाकर सशक्तिकरण कहना कोई बहुत अजीब बात नहीं है। भारतीय पूंजीपति जब अपने शेयर सूचकांक के ऊपर उठने को पूरे देश का विकास कह सकता है, भले ही गरीब की थाली से भोजन, शरीर से कपडा, और सर से छत गायब होते जा रहे हों।

महिलाओं के मामले में भी यह अपने वर्ग व शासन का हिस्सा बन रही महिलाओं के विकास को पूरी महिला आबादी के विकास का पर्याय बना देता है, यह बहुत चिंता का विषय है। वैसे तो व्यवसाय, सरकार, सार्वजनिक प्रशासन, राजनीति और अन्य पेशा में महिलाएँ पहले से कहीं अधिक अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर रही हैं, लेकिन ग्रामीण इलाकों में स्थिति बिल्कुल विपरीत हैं।

सही मायने में देखा जाये तो महिला सशक्तिकरण का अर्थ ही है महिला को सम्मान देना और आत्मनिर्भर बनाना है, ताकि वो अपने अस्तित्व की रक्षा स्वयं कर सकें।
जब तक महिलाओं का सामाजिक, वैचारिक एवम पारिवारिक तौर पर उत्थान नहीं होगा तब तक सशक्तिकरण का ढोल पीटना एक खेल ही बना रहेगा। सामाजिक उत्थान का आधार-स्तंभ है नारी-शिक्षा और शिक्षित व्यक्ति ही अपनी समानता और स्वतंत्रता के साथ-साथ अपने कानूनी अधिकारों का बेहतर इस्तेमाल कर सकता है।

बीते लगभग पांच-छः वर्षों से मैं सार्वजानिक (राजनैतिक) जीवन जी रहा हूँI लेकिन अभी तक यहाँ महिलाओं के प्रति लगभग 80 प्रतिशत पुरुषों का जो रवय्या (दृष्टिकोण) मैंने देखा है वो बहुत ही शर्मनाक और चिंतनीय रहा है।

यदि हम वाकई महिला सशक्तिकरण को लेकर गंभीर हैं तो फिर हमें अपने सिस्टम में महिलाओं को काम करने के लिए एक स्वच्छ वातावरण देना होगा जिसमे उन्हें तनिक भी संकोच या घुटन न महसूस हो और वो खुले मन से समाज और महिला जगत की बेहतरी के लिए काम कर सकें। इसके लिए बस हमे इतना मान लेना है कि हमारी एक महिला साथी के भी वही अधिकार हैं जो हमारे हैं और जो भेदभाव हम जाने अनजाने में महिलाओं के साथ सिर्फ उसके महिला होने के नाते करते है उससे भी हमे परहेज़ करना चाहिए। हमे अपनी घूरती हुई निगांहों पर भी अंकुश लगाना होगा और महिलाओं के साथ भी वैसा ही बर्ताव करना चाहिए जैसे हम अपने पुरुष सहयोगियों के साथ करते हैं।

आईये आप सभी हमारे साथ संकल्प लीजिये की आगे से आप अपने अपने कार्यक्षेत्रों में महिलाओं की सक्रीय भागीदारी बढाने के साथ साथ उनको काम करने के लिए स्वस्थ एवं स्वच्छ वातावरण प्रदान करने का हरसंभव प्रयास करेंगे।
-ई इमरान लतीफ