Monday, July 1, 2024
साहित्य जगत

गजल

वस्ल   की  रात  में  वो  जगाते रहे !
आमने      सामने    मुस्कुराते    रहे !!

एक दीपक  जो कोने में जलता रहा !
वो   बुझाते   रहे   हम  जलाते   रहे !!

नींद  आती  नही  जब  मुझे  रात में !
थपकियों   से   हमे  वो  सुलाते  रहे !!

ज़ुल्फ़ में उँगलियाँ यूँ  घुमाकरके  वो !
मेरे   हाथों   का   कंगन   घुमाते रहे !!

उनके होठों की नाज़ुक हँसी देखकर !
हम   ग़ज़ल  रातभर  गुनगुनाते  रहे !!

         कोमल ‘नाज़ुक’
        रायबरेली उत्तर प्रदेश