ग़ज़ल
निगाहों से ही साजिश हो रही है।
मेरी भी आजमाइश हो रही है।।
ज़रा एक मीठी सी तुम तानछेड़ो।
ये महफिल की गुज़ारिश हो रही है ।।
दुआओं का असर है मां का देखो ।
ग़ज़ल कहने की ख्वाहिश हो रही है।।
घरों पर ही नहीं है उसकी रहमत ।
लो खेतों में भी बारिश हो रही है।।
ग़रीबी जब से है हर्षित पे छाई।
तभी से घर में रंजिश हो रही है।।
विनोद उपाध्याय हर्षित
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