Saturday, May 18, 2024
साहित्य जगत

खुले आसमान में उड़ना चाहती हूं,….

खुले आसमान में उड़ना चाहती हूं,
ख्वाबों के जहां में विचरना चाहती हूं।।

बंधनों को तोड़ कर मैं बढ़ना चाहती हूं।
मुठ्ठी में जहां को अपने भरना चाहती हूं।।

विभत्स पथ छोड़ कर संवरना चाहती हूं।
अपने दम पर अपनी फतह करना चाहती हूं।।

भींड से निकलना, भेड़ ना बनना चाहती हूं।
अपने जहां को अपने हाथों गढ़ना चाहती हूं।।

अब सीमाओं में बंधकर ना रहना चाहती हूं।
सरहद को छोड़ हद से गुज़रना चाहती हूं।।

आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ ( उत्तर प्रदेश)