Wednesday, July 3, 2024
साहित्य जगत

निमोना

याद आते हैं बहुत, बीते दिन वो बचपन के
याद आते हैं बहुत, वो स्वाद अपने बचपन के

शरद ऋतु का आगमन, खेतों में लगती फलियाँ
हरी मटर के दाने वो, कच्ची पक्की बिखरी गलियाँ

खेतों से कभी फली तोड़ना, कभी पौधे संग घर लाना
आज नहीं वो खेत है दिखता, न ही वो दिन बचपन के
याद आते हैं बहुत, बीते दिन वो बचपन के

आज बनाया वही निमोना, लोहे के उस बरतन में
बिछड़ गयी वो फलियाँ हमसे, हाइब्रिड की दुनिया मे

वो छोटी छोटी हरी मटर के, होते थे मीठे दाने
आज लंबी लंबी फलियाँ, खूबसूरत दिखने के

सब्जी वाली अलग मटर है, छोले वाली अलग हुई
कितना भी पोपटा ढूंढो तुम, स्वाद नहीं वो बचपन के
याद आते हैं बहुत, बीते दिन वो बचपन के

सरिता त्रिपाठी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश