Saturday, April 20, 2024
संपादकीय

कितना सार्थक है हिन्दी दिवस मनाना?

आज हम लोग हिंदी दिवस मना रहे हैं सोचने वाली पहली बात तो यहहै कि साल में एक दिन दिवस मना लेने से हम हिंदी को राष्ट्रीय भाषा नहीं बना पाएंगे राष्ट्रीय भाषा का तात्पर्य होता है कि सब कुछ हिंदी में हो।अर्थात कि हिंदी भाषा मे लघु शिक्षा से उच्च शिक्षा तक व्यवस्था बनाई जाए। जिससे बच्चे मेडिकल साइंस इंजीनियरिंग जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अपना योगदान दे सकें कहना तो बहुत आसान होता है कि हम भारतीय हैं और हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा आज अगर देखा जाए तो किसी भी साहित्यकार पत्रकार नेता समाजसेवी जो हिंदी की वकालत तो मंचो से करते हैं। पर उनके बच्चे सीबीएसई पैटर्न से इंग्लिश माध्यम विद्यालयों में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं यहां यह कहना गलत ना होगा उपदेश देना तो बड़ा आसान होता है लेकिन उसका पालन करना उतना ही कठिन होता है क्योंकि हमें जरूरत है महात्मा गांधी के पद चिन्हों पर चलने के लिए कहा जाता है कि किसी बच्चे को अधिक गुड़ खाने की आदत थी और गांधी जी ने उससे कहा 3 दिन बाद आना 3 दिन बाद जब उस बालक को लेकर गांधी जी के पास उसके परिजन जाते हैं तो गांधीजी ने बच्चे से कहाँ कि अधिक गुड़ नहीं खाना चाहिए यह अच्छी आदत नहीं है। इस पर बच्चे के परिजन ने कहा बापू आपने जो बात आज के वह 3 दिन पहले भी कह सकते थे आपने क्यों नहीं कहा इस पर गांधी जी ने कहा 3 दिन बाद बुलाया इस पर गांधी जी ने कहा पहले मैं भी गुड खाता था इस रात में बच्चे को मना नहीं कर सकता था अब मैंने गुड छोड़ दिया है तब मैं इस बच्चे को नसीहत दे रहा हूं।

जरूरी यही है कि पहले खुद अमल करें उसके बाद उपदेश दे। बताते चलें कि वर्ष 1949 में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की बिल पारित की गई फिर 1953 में 1953 में यह निर्णय लिया गया प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को प्रत्येक वर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाएगा। हिंदी भाषा को राष्ट्रीय दर्जा तो मिल गया लेकिन 1965 में तमिलनाडु में हिंदी को राष्ट्रीय भाषा बनाएं जाने को लेकर दंगा हुआ।

साल में 1 दिन यानी 14 सितंबर को हिंदी भाषा राष्ट्रीय भाषा की वकालत तो बड़े जोर शोर से होती है लेकिन ना तो न्यायालय में न ही पुलिस प्रशासन मैं और ना ही किसी सरकारी दफ्तरों में हिंदी को कोई कोई स्थान मिल पाया। आज अगर चीन आगे है तो उसका सिर्फ एक कारण है वहां के सारे काम चीनी भाषा में होते हैं, रूस आगे है तो वहा हर काम रशियन भाषा में होता है अमेरिका और ब्रिटेन आगे है तो वहां सारे काम सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी में होते हैं अगर सऊदी आगे है तो वहां अरबी भाषा में सारे कार्य होते हैं।

हिंदुस्तान में सारे काम हिंदी में क्यों नहीं होते जरूरत है अपने आप को टटोलने की जब तक प्रत्येक व्यक्ति देश का बच्चा-बच्चा अपनी भाषा के प्रति ईमानदार नहीं होगा तब तक केवल कागजो में हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाए रखने की बात चलती रहेगी।

जब तक सरकारी से लेकर निजी संस्थानों में यानि सेना, उड्यन, न्यायलय, प्रशासनिक, छोटी बड़ी सभी निजी इकाइयों,चिकित्सा आदि क्षेत्रों में हिन्दी मे कामकाज करने के लिए शख्स कानून नही बनाये जायेगे तबतक हिन्दी को राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिलाना मुंगेरीलाल के हसीन स्वप्न जैसा होगा।

-राजेश कुमार पाण्डेय