Sunday, July 7, 2024
साहित्य जगत

गज़ल

◆◆◆◆◆ग़ज़ल◆◆◆◆◆

ज़िंदगी मुझको क्यों सज़ा लगती
इसकी हर सांस बेवफा लगती ।

दिल से ताल्लुक़ नहीं बना इसका
अब तो मुझको ये बददुआ लगती।

देने वाले ने दे दिया मुझको
ज़िंदगी ऐसी इक खता लगती।

अब तो जीने को दिल नहीं करता
मौत भी मुझसे बेवफा लगती ।

दिल में जुगुनूं कभी नहीं चमके
रौशनी भी तो अब ख़फ़ा लगती।

ज़िंदगी फिर भी जी रहा आतिश
यह भी अग़यार की दुआ लगती।

आतिश सुल्तानपुरी
बस्ती (उत्तर प्रदेश)