Tuesday, July 2, 2024
साहित्य जगत

बुरे हालातों से जिसने मुझे निकाला है…

बुरे हालातों से जिसने मुझे निकाला है,
मिरे लिए वही मस्जिद वही शिवाला है।

बड़ा एहसान मेरे दोस्तों का है मुझ पर,
जिन्होंने गिरते हुए मुझको यूं सँभाला है।

सम्भल के रहना ऐसे लोगों से जमाने में,
जो तन से गोरे हैं पर मन बहुत ही काला है।

कभी भी कोई बला मुझपे नही आ सकती,
दुवाएं मेरी माँ की हर बला को टाला है।

मिला है ज्ञान का दीपक जो मेरे गुरूओं से,
उसी से जिदंगी में तो मेरे उजाला है।

जब तलक जिदंगी है, प्रेम से रहो ‘भावुक’
नही किसी को पता कल क्या होने वाला है।

-जगदम्बा प्रसाद “भावुक”
बस्ती (उत्तर प्रदेश)