“चलो गांव की ओर”
“”हे बन्धु चलो उस दिशा चलें जिस दिशा धूप में छाँव चले….
जिस ओर भाव के शूल बिंधे, मायावी पुष्प न पाँव तले…
चल चलें कहानी गीतों में, खलिहान -खेत ,बागीचों में…
रहता था भाव अभावों में ,चल उसी पुराने गाँव चलें..!
जहां टूटी फूटी मड़ई से प्रासाद लजाया करते थे….
जहां बेसन की रोटी ,चटनी पर देव लुभाया करते थे
जहां केलों के पत्तों, पत्तल पर प्रेम परोसा जाता था…
जहां जुगनूं काली रातों में पेड़ों को सजाया करते थे……!
जहां धूलि धूसरित बच्चों के दल कलरव- क्रंदन करते थे ….
जहां धरा चूम होता प्रभात ,सब संध्या वंदन करते थे..
जहाँ पेड़ ,पशु,पक्षी, प्रकृति की निशिदिन पूजा होती थी….
जहां रक्षा सारे गोकुल की,खुद गोकुल नंदन करते थे…!
रे मन चल फिर उस ओर चलें ,जहां जरा(वृद्धावस्था) सुहानी होती थी….
जहां भावों को समझाने को ,अनगिनत कहानी होती थी…
जहां रीति- कुरीति, प्रथा -कुप्रथा के संग मनुजता रहती थी….
चल मीत मेरे उस ओर चलें,जहां हवा सुहानी बहती थी…..!””
-डॉ हेमन्त सिंह
एम. बी. बी. एस
(राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय आजमगढ़)