Monday, July 1, 2024
बस्ती मण्डल

कुदरहा/बस्ती।सन्त तुलसीदास कृत रामचरितमानस समूचे मानव समाज के लिए आचार संहिता के समान है। इस ग्रंथ से मर्यादा का पालन करने की सीख मिलती है। जो लोग मानस मे बताए गये मार्ग पर चलते है। उन्हें संकटो का सामना नहीं करना पड़ता है। मानस मे जड़ चेतन सबमे भगवान का वास माना गया है। मानस की शुरुआत मे तुलसीदास जी ने लिखा है कि सीय राम मय सब जग जानी, करहु प्रनाम जोरि युग पानी। मानस का श्रवण और मनन मानव समाज के लिए बहुत उपयोगी है।

यह सदविचार अवध धाम से पधारेे कथा व्यास पं प्रदीप शास्त्री जी महाराज ने व्यक्त किया। वे श्री ब्रम्हदेव बाबा मन्दिर परिसर कोरमा में आयोजित नौ दिवसीय संगीतमयी रामकथा के पांचवें दिन व्यास पीठ से प्रवचन सत्र मे श्री राम विवाह प्रसंग पर अपना विचार व्यक्त किया।

उन्होनें विवाह की कथा को विस्तार देते हुए कहा भगवान मे बचपन से त्याग की भावना थी। उन्होंने संतो के यज्ञ की रक्षा के लिए द्वार पाल बनकर यज्ञ की रक्षा किया। जिस यज्ञ से विश्व का कल्याण होता है। यज्ञादि कर्म से जल की वृष्टि होती है। भगवान ने जनकपुर जाकर अहंकार रुपी शिव धनुष का खंडन कर जनक जी के संताप को दूर कर सीता जी से पारिग्रहण संस्कार का निर्वहन किया। और आधार शिला रुपी अहिल्या का उद्धार कर भगवान ने यह.संदेश दिया कि जिसे जगत के लोगो ने ठुकराया था उसे जगत पिता ने अपनाया। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भौतिक सुख सुविधाओं को छोडकर मर्यादा का पालन किया। अयोध्या के महल में जब से राम जी ब्याह कर आए हैं पूरे अयोध्या में मंगल गीत गाया जा रहा है।

कथा के दौरान मुख्य रूप से मन्दिर के पुजारी मंगल प्रसाद ओझा, यज्ञाचार्य वृजराज शास्त्री, मुख्य यजमान ठाकुर शरण ओझा, जयकरन ओझा, सूर्य नारायण ओझा, सरयू प्रसाद ओझा, अद्या प्रसाद ओझा, काशी प्रसाद ओझा, जगदम्बा प्रसाद ओझा सहित बड़ी संख्या में स्थानीय ग्रामीण मौजूद रहे।