Wednesday, June 26, 2024
साहित्य जगत

अब के फागुन

अब के फागुन, जब तुम आना

संग ले कर आना टेसू के फूल।
एक पलाश उठाकर
टंकित कर देना मेरी वेणी में,
और थोड़े रखना संम्भाल।
अबीर गुलाबी लेकर आना
और ,थोड़े लाल गुलाल ।
लाज से लाल हुए गालों को,
करकमलों से रंग देना।
रंगों, संग पिचकारी लाना,
भरकर पक्के प्रीत के रंग।
बहुरंगी रंगों से रंगना
अन्तर्मन के भाव अनेक।
कुछ भूले- बिसरे यादों के,
बिरवा बना ले आना,
स्मृतियों की लाली से ,
अधरों को तुम रंग देना।
उर हो सुवासित, श्वास हो सुरभित
ऐसे उपहार ले आना।
अब के फागुन जब तुम आना
ऐसा पक्का रंग ले आना…!
उम्र भर जो छूट सके ना,
ना हो फीका,हो बेदरंग ना,
दूजा कोई रंग चढ़े ना….!
ऐसा सच्चा रंग ले आना..!!
अब के फागुन जब तुम आना ।।

आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)