Tuesday, July 2, 2024
साहित्य जगत

जातीयता का दंश

सुविस्तृत अनन्त ब्रम्हाण्ड
जिसका एकांश धरती
धरती को सीमित करते
देश।
देशों में भारत
भारत में जाति
जाति।
जाति की उपजाति
जातियों का वर्गान्तर ।
छोटी जाति-बड़ी जाति,
ऊँची जाति-नीची जाति,
श्रेष्ठ जाति-निम्न जाति,
छूत जाति-अछूत जाति,
त्याज्य जाति-वरेण्य जाति,
उत्तम जाति-अधम जाति।

जातियों में वर्चस्व की जंग,
भारतीय “राष्ट्रीय कलंक”।

पोपटलाल ने इतिहास खँगाला,
बोले—-
” एक पूर्वाग्रही ऊँची जाति की
अपनी जातीयता को हठात्
पुनर्स्थापित करने का खामियाजा
देश को तीन टुकड़ों में बँटकर
भुगतना पड़ा।

रहमान मियाँ ने समर्थन किया—
“उसी एकमात्र जाति की
जातीय वर्चस्व की पुनर्स्थापना
के षणयन्त्र ने आज पुनः
समाज के मजबूत ढाँचे और
गंगा-जमुनी तहजीब को
इतना विषाक्त व
कमजोर बना दिया है कि
बग़ावत का एक झोंका
विभाजन की नींव रख देगा।

खबरदार, होशियार!!
जन्मना श्रेष्ठता
राष्ट्रीय एकता का अभिशाप है,
दिल्ली से गुजारिश है कि
इस पर पाबन्दी हो,
कि जिसकी सोच और नीयत
इतनी गन्दी हो,
उनको तात्कालिक समुचित इलाज
मुहैया करवाया जाय।
खबरदार किया जाय
जातीयता के स्थान पर
राष्ट्रीयता का पोषण हो।

गोकुल मल्लाह उवाच—-
” उस ऊँची जाति ने
अपनी सुरक्षार्थ,
कुछ और जातियों को भी
उठाया है,
किन्तु उनकी सीमाओं को
सुनिश्चित करके।
ताकि वर्चस्व
अक्षुण्य रहे।

तुम्हारे पास बड़ा ओहदा,
ऊँची बौद्धिकता है
तो क्या ?
निम्न जाति के तो हो,
अपनी निम्नता को समझो
और औकात में रहो।

सावधान!!
तुम शिक्षक हो,
किन्तु नीची जाति के ।
तो तुम्हारा धर्म है,
चपरासी को भी सलाम
अदब से करो,
आखिर चपरासी
उच्च जाति का जो है।

आप आई ए एस भी हैं
किन्तु निम्न जाति से हैं,
तो सच्चाई
कुबूल कीजिए
कि वक्त आपका भी
घुटन में ही कट रहा होगा।
आपकी भी लगाम ,
वहीं जो कैद है।

यदि आप उच्च जाति के हैं,
तो आपके बच्चों को क्लास में,
सौ गलतियाँ करने का
अधिकार क्यों नहीं ?
किन्तु यदि बच्चा
निम्न जाति से है,
तो उसे, एक गलती का भी
अधिकार कैसे ?

उसी ऊँची जाति के प्रिंसिपल ने
उच्च स्वर में कहा था—
“ध्यान रहे—–
प्रायोगिक परीक्षा है,
निम्न जाति के बच्चों को
पासिंग मार्क्स से ज्यादा नहीं,
और हमारी जाति के
किसी भी बच्चे को पूर्णांक से
कम अंक ना मिले।

प्रतियोगी परीक्षाओं के
साक्षात्कार में
उच्च जाति के कैन्डिडेट्स को
सर्वोच्च अंक दिये जाने की परम्परा
अद्यतन अनुसंधान का विषय है।

उस ऊँची जाति द्वारा
निम्न जाति की बहन-बेटियों से
बलात् का अधिकार क्यों नहीं ?
आखिर जाति भी
उसी ऊँची जाति ने ही बनायी है।
कि उसके ग्रन्थ भी तो
यही कहते हैं।
जिनका निम्न जाति वाले तुम,
नित्य पारायण करते हो।

सनद रहे,
देश को विकास-पथ पर,
तीव्र गति से बढ़ाना है तो,
निम्न जातियों की लगाम,
उस ऊँची जाति को सौंपना ही होगा।
क्योंकि
विकास बैलों का भी हुआ तो फिर
जुआठा कौन उठाएगा ?

बलात्कारी
गर उच्च जाति का हो,
तो पीड़िता को प्रशासन
अर्द्ध रात्रि में ही
सुपुर्द-ए-खाक कर दे,
शहंशाह का हुक्म है।

हत्यारे की जाति ऊँची है ?
फिर भी सलाखों में?!
उसे तत्काल आजाद किया जाय,
और राज्य को
अपराध-मुक्त बनाने हेतु
इक्यावन गाडिय़ों के काफिले सहित,
एक सौ इक्यावन किलो का
फूलों का हार पहनाकर
उसका भव्य स्वागत किया जाय,
शाह-ए-तख्त का फरमान है।

आप ऊँची जाति के हैं,
तो आपको
अपराध/अनाचार करने का
नैसर्गिक अधिकार है,
कारण—-
यही जाति की संकल्पना का
मूलाधार है।

देश की आत्मा
जब आपको स्वीकार चुकी हो,
ऐसे में देश-विरोधी
अपने भावों,
विचारों,
सिद्धान्तों,
आडम्बरों,
अन्ध-विश्वासों द्वारा,
समाज का गला
घोंटने को आतुर
आपका जातीय दम्भ,
आपके अस्तित्व के ताबूत में,
आखिरी कील साबित होगी।
आपका पुनर्उद्घाटित विदेशी-रूप,
देश को आपके खिलाफ,
संगठित कर देगा।

एक जाति विशेष के
मुट्ठी भर लोगों ने,
अपने जातीय दम्भ का
प्रदर्शन कर
सर्वहारा को
एक साथ ला दिया है।
जरूरत बस
एक झोंके भर की है।
यदि ऐसा हुआ
तो उस जाति के सम्मुख
जातीय दम्भ के साथ ही,
अस्तित्व का संकट आना
अवश्यम्भावी है।

पुनः
स्मरण रहे—-
जातीय श्रेष्ठता की,
हठात् पुनर्स्थापना का षणयन्त्र,
समाज के ताने – बाने और
देश के विभाजन की शर्त पर होगा।
अतः
इस षणयन्त्र से बचें।
क्योंकि—-
दुर्निवार सा बढ़ता,
जातीय आतंक,
सत्यानाशी है ।

डाॅक्टर कृष्ण कन्हैया वर्मा
प्रवक्ता-हिन्दी
श्री शिव मोहर नाथ पाण्डेय किसान जनता इण्टर कालेज नगर बाजार बस्ती