Thursday, June 27, 2024
साहित्य जगत

बस एक कप चाय

बस एक कप चाय

एक कप चाय !
हां ! बस एक कप चाय !
जब भी मेरे हाथ होता है,
मैं होती हूं, खुद के साथ !
और ढ़ेर सारी तुम्हारी यादें
जाने कितनी बातें होती हैं
उस बीच हमारे-तुम्हारे !
और जब मौसम सुहाना हो,
कुछ नगमा-तराना हो,
इसी बीच! तेरी यादों का
आना जाना हो!
देखती हूं चाय को,
बड़ी रुमानियत से।
जैसे-चाय ना हो
तुम्हारा साथ हो।
दिन भर के सभी क्षणों से
खुशनुमा होता है,
एक कप चाय!
हां! बस, एक कप चाय!

आर्यावर्ती सरोज “आर्या”
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)