भागवत का मुख्य विषय है निष्काम भक्ति- आचार्य धरणीधर
,सन्तकबीरनगर।(कालिन्दी मिश्रा) विकास खंड सांथा के अंतर्गत अमरहा में चल रहे श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे दिन अयोध्या धाम से पधारे कथा व्यास आचार्य धरणीधर जी महाराज ने कहा जहां भोग इच्छा है वहां भक्ति नहीं होती।भोग के लिए की गई भक्ति से भगवान प्रसन्न नहीं होते।भोग के लिए भक्ति करने वाले को संसार प्यारा है।भगवान के लिए ही भक्ति करो भक्ति का फल भगवान होना चाहिए। संसार सुख नहीं। भगवान का जो आश्रय लेता है वह निष्काम बनता है।परमात्मा से मिलने की आतुरता के कारण ही संत का मिलन होता है। जीव जब परमात्मा से मिलने के लिए आतुर होता है तो परमात्मा की कृपा से संत मिलते हैं। श्रवण के तीन प्रधान अंग हैं श्रद्धा, श्रोताओं को चाहिए कि वे मन को एकाग्र करके श्रद्धा से कथा सुने।जिज्ञासा श्रोता को जिज्ञासु होना चाहिए जिज्ञासा के अभाव में मन एकाग्र नहीं होगा।और कथा का कोई असर भी नहीं होगा ।बहुत कुछ जानने की जिज्ञासा, होगी तो कथा श्रवण से विशेष लाभ होगा निर्मत्सरता, श्रोताओं के मन में जगत के किसी भी जीव के प्रति मत्सर नहीं होना चाहिए कथा में दीन और विनम्र होकर जाना चाहिए आपको छोड़कर भगवान से मिलने की तीव्रता की भावना से कथा श्रवण करोगे तो भगवान के दर्शन होंगे। जीव जब निर्भय बनता है तभी वह भाग्यशाली होता है। जिसके सिर पर कॉल का भय है वह निर्भय कैसे हो सकता है।भाग्यशाली तो वह है जिसे मृत्यु का भय नहीं है। महाराज परीक्षित को सात दिन में मरने का श्राप मिला परीक्षित भयभीत नहीं हुए संत की शरण में गए संत की शरण में जाने से उन्हें अभय प्राप्त हुआ।इस अवसर पर कार्यक्रम के आयोजक जटाशंकर पाण्डेय, रमाकांत पाण्डेय, कमलाकान्त पाण्डेय,विजय बहादुर पाण्डेय, रविकांत पाण्डेय, सुभाषचन्द्र पाण्डेय,राजन पाण्डेय, राजेश पाण्डेय, विरेन्द्र यादव, संतराम यादव, दिनेश पाण्डेय समेत तमाम लोग मौजूद रहे