हँसी अगर होठों पर हो तो….
हँसी अगर होठों पर हो तो सुख से वक़्त गुज़रता है
दुख की बाहों में सुख बेचारा हर रोज़ सुलगता है ।
धकियाने और जोर जबरदस्ती से कहाँ चला बोलो
चलते चलते चल जाता है जीवन यूँ ही चलता है ।
रिश्तों में दिन उगते रहते काली रातें आती हैं
हर रिश्ता इस वक़्त सेज पर करवट कई बदलता है ।
पीड़ाओं के पेड़ घनेरे आशा ने झूले डाले
कोई सपना फुदक फुदक कर सजता और सँवरता है ।
विद्रोही स्वर आज़ादी का जनक बना है हर युग मे
ये विचार एक बीज की तरहां भीतर भीतर पलता है ।
पढ़ने सुनने वालों की रग रग दहकाने वाला हर
अक्षर अक्षर मेरे भीतर पहले कहीं उबलता है ।
रात रात भर आँखों मे आँसू की फ़सलें उगती हैं
पर पीड़ा से उपजे जख्मो में कहीं दर्द कसकता है ।
सीख जगत के हाथों में सम्भलाने से पहले ‘सागर’
अन्तस् के इस गहन कुँए में गिरकर कोई सम्भलता है ।
वीणा शर्मा ‘ सागर’
जयपुर राजस्थान