गिरधर को पुनः पुकार !
सुन हे नारी, तू जाग – जाग।
बाधाओं से मत भाग – भाग।
मत सोच कि तुझमे कम बल है,
तू तो इस जग का सम्बल है।
तुझमे है ज्ञान असीमित सुन
है अनुसंधान असीमित सुन।
तू दिव्य शक्ति की दायक है।
तुझसे उपजा हर नायक है।
तू ही झाँसी की रानी है
रणचंडी आदि भवानी है।
तूने गढ़ डाले कीर्तिमान
छूकर तू आई आसमान।
अब हो भयभीत खड़ी है क्यों
सोई ये शक्ति पड़ी है क्यों।
क्यों भारी तुझपे पुरुष हुआ
क्यों उसने तेरा चीर छुआ।
है हाल द्रौपदी के जैसा
ये जग बैठा पांडव जैसा।
तो अब फिर से हुंकार लगा
गिरधर को पुनः पुकार लगा।
ये गिरधर कोई और नही
तेरे भीतर का है प्रकाश।
जो तू खुद को पहचान गयी
तो होगा दुष्टों का विनाश।।
पूनम
लखीमपुर खीरी(उ०प्र०)