Tuesday, July 2, 2024
साहित्य जगत

हँसी अगर होठों पर हो तो….

हँसी अगर होठों पर हो तो सुख से वक़्त गुज़रता है
दुख की बाहों में सुख बेचारा हर रोज़ सुलगता है ।

धकियाने और जोर जबरदस्ती से कहाँ चला बोलो
चलते चलते चल जाता है जीवन यूँ ही चलता है ।

रिश्तों में दिन उगते रहते काली रातें आती हैं
हर रिश्ता इस वक़्त सेज पर करवट कई बदलता है ।

पीड़ाओं के पेड़ घनेरे आशा ने झूले डाले
कोई सपना फुदक फुदक कर सजता और सँवरता है ।

विद्रोही स्वर आज़ादी का जनक बना है हर युग मे
ये विचार एक बीज की तरहां भीतर भीतर पलता है ।

पढ़ने सुनने वालों की रग रग दहकाने वाला हर
अक्षर अक्षर मेरे भीतर पहले कहीं उबलता है ।

रात रात भर आँखों मे आँसू की फ़सलें उगती हैं
पर पीड़ा से उपजे जख्मो में कहीं दर्द कसकता है ।

सीख जगत के हाथों में सम्भलाने से पहले ‘सागर’
अन्तस् के इस गहन कुँए में गिरकर कोई सम्भलता है ।

वीणा शर्मा ‘ सागर’
जयपुर राजस्थान