Tuesday, July 2, 2024
साहित्य जगत

गूंथ ली कच वेणी में

गूंथ ली कच वेणी में
अहसासों के फूल,
कर लिया सुवासित
मन का आंगन,
स्मृतियों के भ्रमर
मंडरा उठे कदली
कुबेर पर,
छट गए कुहासे
कुदिन -कुक्षिन के,
गूंज उठी शहनाई
सूने घर -आंगन में,
कल्पना की अल्पना
में रंग गहरा गए,
घटा घन घुमड़ कर
फिर से छा गए,
तपती अवनी पर
बदरा बरसा गए,
प्रेम की बांसुरी ने
मधुर राग छेड़ी है,
अधरों पर मोहक
मुस्कान फिर छा गए।
लालित्य से सवांरी,
कुसुमित गात्र,
मरुत के झोंके से
नीम झहरायी जो,
सुरमा भरी अखियां
चंचल हो आई है,
सगुन सूचक भया
कागा मुंडेर का,
आगमन पर पी के
राह -द्वार अकुलाई है।।

आर्यावर्ती सरोज “आर्या “
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)