Saturday, May 18, 2024
साहित्य जगत

मेरी माँ का प्यार।

जब मैं दोनों बाँहें फैलाए, आसमान को ख़ुशी से निहारती।

जब मैं बिना पंख उड़ती-फिरती इत उत,
जब मैं इतराती अपने ऊपर,
कुछ भी स्वादिष्ट बनाती जब मैं ।
जब मैं हर परिस्थिति मे मुस्कराती ,
और हल ढूंढ निकालती मैं, जब मैं टकरा जाती और गलत को गलत कहने से बिल्कुल नहीं हिचकती।

जब मैं सुंदर दिखती, मेरी हिचकी, मेरी रफ़्तार, ‘मेरे चारो धाम, मेरे आठो याम ।

मेरी मनके की माला, मेरी खुश मिजाजी, मेरी तुनक मिजाजी, मेरी काया मेरी सारी विलक्षण बातें।

है ये सब क्या अब भी नहीं समझे?
है ये अनमोल वो है मेरी माँ का प्यार, मेरी माँ का प्यार, महिमा का पूरा आसमान ।

स्वरचित
शब्द मेरे मीत
डाक्टर महिमा सिंह