Monday, May 6, 2024
साहित्य जगत

कल्पना

कल्पना की उड़ान
लिए लो उड़ चली मैं
ना कोई रोक- टोक
ना कोई पहरा…..
अपनी हसीन दुनिया में
लो अब चली मैं
सूरज पर ,
बर्फ़ की टिल्लो से खेलूं
तारों के बीच झूमू ,नाचूं,गाऊं
कोई पाबंदी नहीं
कोई हस्तक्षेप नहीं
हवाओं से बातें करूं
बादल में छुप जाऊं
पर्वतों पर परियों
का आशियाना बनाएं
सभी सीमाओं से परे
झरनों के साथ बहूं
सागर में मिल जाऊं
कभी- कभी मैं
सतरंगी इन्द्रधनुष बनाऊं..

मेरे काव्य संग्रह ” काव्य मंजरी” से
आर्यवर्ती सरोज
लखनऊ(उत्तर प्रदेश)