Saturday, May 18, 2024
साहित्य जगत

जय जवान..जय किसान

वो कहता है ज़ियादा है नदी मे धार की ताक़त
उसे शायद नहीँ मालूम है पतवार की ताक़त

मेरे काँधे पे सर रखकर जो दुश्मन फूटकर रोया
तो पहली बार देखी ज़िन्दगी में प्यार की ताक़त

हज़ारों टन उगाकर भी मिली है सिर्फ़ दो रोटी
किसानों पर बहुत भारी पड़ी बाज़ार की ताक़त

कभी जो एक पन्ना तोप का मुँह तोड़ देता था
कहाँ गुम हो गई है आज उस अख़बार की ताक़त

बचा ले जान मुफ़लिस की ज़िले के अस्पतालों मे
न इस सरकार की ताक़त, न उस सरकार की ताक़त

जिसे सुनकर करोड़ों पाँव पीछे चल दिए उसके
थी उस आवाज़ मे उस शख़्स के किरदार की ताक़त

हरीश दरवेश
बस्ती(उत्तर1प्रदेश)