Thursday, July 4, 2024
बस्ती मण्डल

डा. वी.के. वर्मा कृत ‘भाव मंथन’ पर विमर्श, युगीन सत्य के कई विन्दुओं को स्वर देता है भाव मंथन-रमन मिश्र

बस्ती । शव्द सुमन साहित्यिक संस्था की ओर से प्रेस क्लब में कवि सम्मेलन और डा. वी.के. वर्मा कृत ‘भाव मंथन’ पर परिचर्चा का आयोजन किया गया।

मुख्य अतिथि जिला पूर्ति अधिकारी रमन मिश्र ने कहा कि साहित्यकार अपने समय काल से आगे की भी दृष्टि रखते है, यही कारण है कि आज तक कबीर, सूर, तुलसी साहित अनेक कवियों की रचनायें लोगों की जुबान पर है। कहा कि डा. वी.के. वर्मा कृत ‘भाव मंथन’ युगीन सत्य के कई विन्दुओं को स्वर देता है। इस कृति में वर्तमान विसंगतियों पर करारी चोट के साथ ही मकड़जाल से बाहर निकलने का बौद्धिक मरहम भी है।
डॉ. रामदल पाण्डेय ने कहा कि भाव मंथन समाज की पीड़ा का सशक्त स्वर है, रचनाकार से अपार संभावनायें है। प्रदीप चन्द्र पाण्डेय ने कहा कि डा. वर्मा चिकित्सक के साथ ही समर्थ कवि है और भाव मंथन मंें उन्होने जो देखा उसे बेहिचक लिखा, यह भाव पुस्तक का संग्रहणीय बना देता है। हरिश्चन्द्र शुक्ल, पन्नालाल यादव, डा. त्रिभुवन प्रसाद मिश्र, रामशंकर जायसवाल, वीरेन्द्र प्रताप सिंह ने, उमेश चन्द्र श्रीवास्तव ‘चंचल’ ‘भाव मंथन’ के महत्वपूर्ण विन्दुओं पर विस्तार से प्रकाश डाला। भाव मंथन के रचनाकार डा. वी.के. वर्मा ने कहा कि समयगत सच्चाईयोें के बीच जिसे देखा, अनुभव किया वह कविता बनकर पुस्तक के रूप सामने आ गई, निर्णय पाठकों के हाथ में है।
शव्द सुमन साहित्यिक संस्था के संस्थापक वरिष्ठ कवि डॉ. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ के संचालन में हुये कवि सम्मेलन की शुरूआत डॉ. सुशील सागर के सरस्वती वंदना से हुई। डा. ज्ञानेन्द्र द्विवेदी दीपक की रचना ‘ बजाकरके सरगम की धुन पर कहरवा, वो दस बरस का, वासुरी बेचता है’ खुश तो नहीं पर खुशी बेचता है, को सराहना मिली। कवि डॉ. रामकृष्ण लाल ‘जगमग’ ने ‘ छोटा बच्चा समझ गया है, घर की जिम्मेदारी, भावुक मन से बेच रहा है मण्डी में तरकारी, मजबूरी में तोड़ दिया है विद्यालय से नाता, अब अपने नाजुक कंधे पर घर का बोझ उठाता है, के माध्यम से गरीब परिवारों की स्थिति को स्वर दिया। ताजीर बस्तवी के शेर ‘ मवेशियों के गले में तो डाल दी रस्सी, मगर ए आदमी खुद बेलगाम चलता है, जरा सी बात पर डांट दी उसको, अब उसकी आंख में काजल तलाश करता है, के द्वारा मंच को नई ऊंचाई दी। विनोद उपाध्याय के शेर ‘ क्यों कोई वफादार नहीं है ये सोचकर, खुद ही उलझ गया हूं विचारों के दरमिया’ को श्रोताओं ने सराहा, सुशील सागर की रचना ‘ सांस चलती रही, तब न आये, क्या करोगे जनाजे में आकर’ ने मनुष्य के बदलती सोच को शव्द दिया। । इसी क्रम में रमन मिश्र, सत्येन्द्रनाथ ‘मतवाला’ सुशील सिंह पथिक, राममूर्ति चौधरी, अनुरोध कुमार श्रीवास्तव, सागर गोरखपुरी, रामचन्द्र राजा, जगदम्बा प्रसाद भावुक, रहमान अली रहमान, श्रीमती नीलम सिंह, सोनिया, हरिश्चन्द्र शुक्ल, राजेश मिश्र आदि की रचनायें सराही गई। इस अवसर पर रमन मिश्र, जयन्त कुमार मिश्र, डा. वी.के. वर्मा, श्याम प्रकाश शर्मा, रंजीत श्रीवास्तव, अजय कुमार श्रीवास्तव, अमर सोनी, अनिल पाण्डेय, दिनेश कुमार पाण्डेय, राकेश त्रिपाठी, राजेश पाण्डेय, राकेश गिरी, आशुतोष, राजेश प्रताप सिंह सहित विभिन्न क्षेत्रों में योगदान करने वालों को सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में लोग उपस्थित रहे।