Wednesday, July 3, 2024
साहित्य जगत

ग़ज़ल

कुछ इस तरह जिन्दगी का साथ निभाया हमनें
दिलो में तल्खी ,न गुलों में इत्र मिलाया हमनें

तमाम उम्र गुजारी है बस इक वादे पर
कभी न और कोई ख्वाब सजाया हमनें

फलक के चाँद के आँचल में जड़े हैं तारे
नेह के दीप से धरा को जगमगाया हमनें

तमाम उम्र मोहव्बत ही अपना मजहब है
कभी किसी परिंदे पर निशाना न लगाया हमनें

करेगा नूर , ये तो उजालों का वारिश है
यही सोचकर आँधियों से दिये को बचाया हमनें ।

अनुरोध कुमार श्रीवास्तव
बस्ती , (उत्तर प्रदेश)