भगवान भक्त के अभिमान को समाप्त कर देते हैं
मुंडेरवा। स्थानीय थाना क्षेत्र के ग्राम दीक्षापार में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के छट्टम दिवस पर रासलीला करते समय गोपियों को अभिमान हो गया कि श्री कृष्णा हम पर अधीन है, मोहित हैं, भगवान उसी समय उनके बीच से अंतर ध्यान हो गए तब गोपियों का अभिमान चूर हुआ एवं उन्होंने प्रभु को पुकार लगाई ।भगवान पुन:उनके बीच प्रकट हो गए। उक्त विचार उज्जैन महाकाल से पधारे महामृत्युंजय पीठाधीश्वर स्वामी प्रणव पुरी जी महाराज ने श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किया।
महाराज जी ने कहा कि मन में विकार है तो प्रभु नहीं रह सकते भगवान ने सुदर्शन का उद्धार करके संदेश दिया कि सभी जीव परमात्मा की सुंदर कृति हैं ।हमें किसी के दिखाने के कारण उसका उपहास नहीं उड़ाना चाहिए। महाराज जी ने कथा को आगे बढ़ाते हुए आज कंस वध का प्रसंग सुनाया। कंस का उद्धार भी आवश्यक था वह भगवान को जन्म लेने से पहले ही नित्य ध्यान करता रहता था चाहे बैर भाव से ही क्यों ना हो कंस वध के पश्चात समस्त मथुरा में हर्षोल्लास फैल गया अर्थात जब दुष्ट संसार से जाता है तो समाज को प्रसन्नता होती है । महाराज जी ने कहा कि सज्जन के जाने पर सभी दुखी होते हैं हमें अपने जीवन में वह कार्य करना चाहिए जिससे हमारे जाने पर लोग हमें स्मरण करके हमारी कमी का अनुभव करें। महाराज जी ने कहा कि भगवान श्री कृष्णा जी ने 64 दिन रात में अपनी शिक्षा पूर्ण की ।महाराज जी ने कहा कि उज्जैन अवातिका पुरी में गुरु सांदीपनी के आश्रम पर प्रभु की शिक्षा हुई। स्वामी जी ने उज्जैन की महिमा बताते हुए कहा जहां ज्योतिर्लिंग सन्ग शक्तिपीठ तो है ही साथ साथ में नारायण की लीला भी वहां हुई। उधो गोपी संवाद से भगवान ने प्रेम ही सर्वोपरि है ।प्रभु को प्रसन्न करने के लिए ऐसा उपदेश सारे जगत को दिया।मुख्य यजमान के रूप में रूप में कैप्टन रमाकांत शुक्ल, श्रीमती चंद्रवती देवी, तथा परिवर के अन्य सदस्यों के साथ प्रवचन के समय उमाकांत शुक्ल, शशिकांत शुक्ल, अमित शुक्ल, राम अवध पांडेय, शुक्ल, त्रिपुरारी पांडेय,राम अवध पांडे, रामचंद्र शुक्ल, चिंता हरण शुक्ल, मोहन शुक्ल मेवालाल शुक्ल, सहित तमाम महिला व पुरुष उपस्थित रहे। कथा के मुख्य आयोजक उमाकांत शुक्ल ने समस्त क्षेत्र वासियों से कथा श्रवण करने की अपील किया है।