अन्तरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस पर हृदय की कुछ बातें आपके साथ
बस्ती। अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस’ अथवा ‘अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस’ अथवा ‘विश्व प्रौढ़ दिवस’ अथवा ‘अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस’ प्रत्येक वर्ष ‘1 अक्टूबर’ को मनाया जाता है। इस अवसर पर अपने वरिष्ठ नागरिकों का सम्मान करने एवं उनके सम्बन्ध में चिंतन करना आवश्यक होता है। आज का वृद्ध समाज अत्यधिक कुंठा ग्रस्त है l
बुजुर्गों के प्रति हमारे कर्तव्य :-
1-सबसे पहले हमें बुजुर्गों के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिये!
2- उनके लिए समय निकालना चाहिए ताकि उनको अकेलापन महसूस न हो!
3- उनकी सेहत का ख्याल रखना चाहिए और नियमित व्यायाम और स्वास्थ्य परीक्षण कराते रहना चाहिए!
4- उनको मान समान पूरा देना चाहिए और कभी रोक टोक नहीं करना चाहिए!
5- उनके साथ अपने शुभ कार्यों को साझा करें इससे उनको खुशी होगीं और उनको अच्छा लगे गा.
तो आईये हम सब मिलकर वृद्ध लोगों की देखभाल करने का संकल्प लें!
फल न देगा न सही,
छाँव तो देगा तुमको
पेड़ बूढ़ा ही सही
आंगन में लगा रहने दो ।’
कानूनी अधिकार- माता-पिता की देखभाल करना हर व्यक्ति की नैतिक जिम्मेदारी है किंतु विभिन्न सामाजिक व्यवस्थाओं में इसके लिए अलग-अलग जिम्मेदारियां कानून ने निर्धारित की हैं।
(i) हिन्दू कानून- साधनविहीन माता-पिता अपने भरण-पोषण के लिए साधन-संपन्न बच्चों पर दावा प्रस्तुत कर सकते हैं। इस अधिकार को कानून आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 (1) (डी) तथा हिन्दू दत्तक भरण-पोषण अधिनियम 1956 की धारा 20 (1 एवं 3) द्वारा मान्यता दी गई है। इस धारा से स्पष्ट है कि अभिभावकों के भरण-पोषण की जिम्मेदारी पुत्रों के साथ-साथ पुत्रियों की भी है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इस धारा के अंतर्गत सिर्फ वे ही अभिभावक आते हैं, जो भरण-पोषण करने में आर्थिक रूप से असमर्थ हैं।
(ii) मुस्लिम कानून- तैयबजी के अनुसार माता-पिता या दादा-दादी आर्थिक विपन्नताओं की स्थिति में हनाफी नियम के अनुसार अपने पुत्र-पुत्रियों या नाती-नातिनों से भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं एवं ये अपने माता-पिता की सहायता के लिए बाध्य हैं।
(iii) ईसाई एवं पारसी कानून- ईसाई एवं पारसियों के अभिभावकों के भरण-पोषण के लिए कोई व्यक्तिगत कानून नहीं हैं। जो अभिभावक भरण-पोषण चाहते हैं, वे आपराधिक प्रक्रिया संहिता के तहत भरण-पोषण की मांग कर सकते हैं।
आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 एक धर्मनिरपेक्ष कानून है तथा ये सभी धर्मों एवं समुदायों पर लागू होता है। इस संहिता के तहत धारा 125 (1) में प्रावधान है कि जो माता-पिता अपने भरण-पोषण में असमर्थ हैं, यदि उनके पुत्र या पुत्रियां उनके भरण-पोषण से इंकार करते हैं तो प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को अपने माता-पिता के भरण-पोषण के इंकार के प्रमाण के आधार पर मासिक भत्ता देने के आदेश दे सकता है।