Tuesday, July 2, 2024
साहित्य जगत

अपना बनकर पराया बनाते हैं लोग…

अपना बनकर पराया बनाते हैं लोग,
दोस्ती जताकर दुश्मनी निभाते हैं लोग ।
किसी और के कंधे पर रखकर बंदूक चलाते हैं लोग,
आती है समझ सभी चाले मुझे अब ।
नहीं अब मैं नादान पहले सी।
जालिम लहरों से कह दो आए पुरे जोश से,
अब यह किनारा नाजुक नहीं पहले सा ।
चोट खाकर हो चला है अब सख्त यकीनन।
तुम कर रहे थे जब मनमर्जियां ,
हमें थी यह गफलत हम भी हैं हिस्सा हर एक खुशगवार पलों का,
पर हमें क्या पता था तुम कर रहे थे साजिशें मीठी चाशनी सी।
वक्त वक्त की बात है चलो खुशगवार पल तुमने साथ बिताए सही ।
दिल किसी का उसी वक्त दु:खाया तुमने जाने अनजाने ही सही ।
बात का क्या है दूर तक जाती है ,
राज को राज रखें अब मिल जाए कोई राजदार हुआ यह नामुमकिन सा।
किसके हिस्से में कौन सा दु:ख आता है ,
यह उस ऊपर वाले की मर्जी।
उसने जो देना है कोई छीन नहीं सकता ,
उसने जो नहीं देना कोई दे नहीं सकता ।
जिसका साथ जितना लिखा है वह उतना ही तो निभाएगा ,
यह मान के मुस्कुरा के आगे बढ़ना भी है जरूरी।
सभी कुछ सही हो यह मुमकिन नहीं ,
कुछ गलत भी हो तभी हम बिखर कर निकलते हैं चमकते हैं ।
इसलिए कुछ गलत होना भी है जरूरी ,
धूल उड़ती है तो अक्स साफ दिखता है ,
इसलिए कभी-कभी मन को झाड़ना ,रिश्तो की सफाई भी है जरूरी ।
जमा कर रखना सिर्फ अच्छी यादें,
और कुछ जमा करके रखना है‌ बेइंतेहा गैर जरूरी।

स्वरचित
शब्द मेरे मीत
डाक्टर महिमा सिंह