Saturday, May 18, 2024
विचार/लेख

रामायण और महाभारत काल में प्रयुक्त विभिन्न प्रकार के दिव्यास्त्रों के सम्बन्ध में क्या कहते हैं वैज्ञानिक?

 

महाभारत का युद्ध 18 दिन तक लड़ा गया था जो संसार का विशालतम अद्भुत युद्ध था। इस युद्ध में शामिल होने वाले सभी योद्धाओं के पास दिव्यास्त्र होते थे जिन्हें आज की मिसाइल की तरह प्रयोग किया करते थे।
महाभारत काल के योद्धा ब्रह्मास्त्रों का प्रयोग परमाणु हथियारों की तरह करते थे और एक साथ सैकड़ों सैनिक मारे जाते थे इस युद्ध में करोड़ों सैनिक लड़े थे जिसमें 40प्रतिशत सैनिक पांडवों और 60 प्रतिशत सैनिक कौरव के पक्ष में युद्ध लड़े थे। महाभारत काल के ब्रह्मास्त्र परमाणु हथियार के समान थे।
क्या है ब्रह्मास्त्र, और इसकी वास्तविक शक्ति कितनी थी।

ब्रह्मास्त्र एक विशेष प्रकार का अस्त्र होता था जो भगवान ब्रह्मा द्वारा बनाया गया है जिसे खुश होकर ब्रह्माजी किसी पराक्रमी योद्धा को वरदान में प्रदान कर देते थे। यह हथियार इतने घातक होते थे कि जिसके चलाने मात्र से ही पृथ्वी पर भूकंप आने लगते थे ज्वालामुखी फटने लगता था और आकाश में अंधेरा छा जाया करता था।

रामायण काल में भी लक्ष्मण के पास ब्रह्मास्त्र था जिसको मेघनाथ पर प्रयोग करने से श्रीराम ने रोक दिया था क्योंकि इससे पूरी लंका नष्ट हो जाती हो जाती। इस अस्त्र को जो व्यक्ति छोड़ता था उसे वापस लेने की क्षमता भी रखता था। महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा को ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना आता था परंतु वापस लेना नहीं आता था जिससे लाखों लोग मारे गए थे।
वैज्ञानिक शोध-वैज्ञानिकों ने शास्त्रों में मिले सबूतों के आधार पर कहा कि महाभारत युद्ध में आज से कई गुना एडवांस परमाणु अस्त्र का प्रयोग हुआ था जिसके कारण बहुत विनाशकारी विध्वंस के सबूत आज भी मिलते हैं। महाभारत का युद्ध 5000 वर्ष पूर्व लड़ा गया था जिसके सबूत भारत के कई हिस्सों में आज भी मिलते हैं। जे. रॉबर्ट ओपन हाइमर ने गीता और महाभारत का गहन अध्ययन किया उन्होंने महाभारत में बताए गये ब्रह्मास्त्र की संहार के क्षमता पर शोध किया और अपने मिशन का नाम ट्रिनिटी रात्रिदेव) रखा। यह कार्य 1939 से 1945 के बीच वैज्ञानिकों की एक टीम ने किया 16 जुलाई 1945 को इसका पहला परीक्षण किया गया। पुणे के डाक्टर व लेखक पद्यमाकर विष्णु वर्तक ने अपने शोधकार्य के आधार पर कहा था कि महाभारत के समय जो ब्रह्मास्त्र प्रयोग हुआ वह परमाणु बम के समान ही था। डॉ0 बर्तक ने 1969-70 में एक किताब लिखी जिसका नाम ‘‘स्वयंभू’’ है इसमें इसका उल्लेख मिलता है।

वे तीन अस्त्र जो ब्रह्मास्त्र से कई गुना शक्तिशाली थे-

1-ब्रह्मशीर्ष अस्त्र-ब्रह्मास्त्र से चार गुना अधिक शक्तिशाली यह अस्.त्र आज के परमाणु बम कितना घातक होता था इस अस्त्र को चलाने से आकाश से अग्नि वर्षा होने लगती थी जिस भूमि पर इसका प्रयोग होता था वहां की भूमि कई वर्षों तक बंजर हो जाती है।

इस अस्त्र का प्रयोग बहुत सोच-समझ कर करना चाहिए। एक बार चल जाने पर इसे वापस नहीं लिया जा सकता। महाभारत में उल्लेख है कि पांडवों का संपूर्ण बिनाश करने के लिए अश्वस्थामा ने इस अस्त्र का प्रयोग उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु परीक्षित के वध के लिए किया था जिसके उत्तर में अर्जुन ने भी इसी अस्त्र का प्रयोग करके अश्वत्थामा के प्रयास को विफल कर दिया। अर्जुन को ब्रह्मशीर्ष अस्त्र को जागृत करने व वापस लेने का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त था। जबकि अश्वत्थामा को ब्रह्मशीर्ष को केवल जागृत करने का ज्ञान द्रोणाचार्य ने दिया था।

2-ब्रह्म दण्ड अस्त्र-

इस अस्त्र का प्रयोग अर्जुन ने महाभारत के युद्ध में कर्ण पर किया था जिसे कर्ण ने निष्प्रभावी कर दिया था। इस यंत्र में 14 आकाशगंगाओ को नष्ट करने की क्षमता थी। यह केवल मंत्र से संधान किया जा सकता था। यह इतना शक्तिशाली था कि ब्रह्मास्त्र एवं ब्रम्हशीर्ष जैसे अस्त्रों को भी प्रभावहीन कर सकता था। उसका उल्लेख रामायण में भी मिलता है।

3-नारायणास्त्र- यह भगवान विष्णु का अस्त्र था। जिसे वह असुरों के वध के लिए प्रयोग करते थे इसकी शक्ति असीम थी इसका प्रयोग हो जाने पर रोक पाना संभव नहीं था। इस अस्त्र को केवल समर्पण भाव से रोका जा सकता था। एक बार महाभारत में द्रोणाचार्य के वध का समाचार अश्वत्थामा को मिला तो वह प्रतिशोध में इसी अस्त्र का प्रयोग पांडवों के ऊपर कर दिया। जिससे भय व्याप्त हो गया है इसे रोकना असंभव था इसलिए तब भगवान श्रीकृष्ण इसे शांत करने के लिए सभी को अपने अस्त्र और शस्त्रों को रखने के लिए कहा। इसका उल्लंघन भयंकर विनाशकारी होगा। (महाभारत सौप्तिक पर्व अध्याय 13 से 15)

वेदों में वर्णित विशेष प्रकार के विमानों के कुछ कीर्तिमान-

वेदों में बिना ईंधन के उड़ने वाले विमान का वर्णन है ऋग्वेद 6/66/7 मत्र के अनुसार-
अनेनो वो मरूतो यामो अस्त्वनश्र जत्यरथी।
अनवसो अनमीशू रजस्तूर्षि रोदसी पथ्या याति साधन।।
इस मंत्र में अत्यन्त स्पष्ट शब्दों में अणुशक्ति से चालित यान का वर्णन है जिसमें लकड़ी, कोयला, पेट्रोल, हवा, पानी की आवश्यकता भी ना हो। वह भूमि पर और आकाश दोनों में चलते थे।

वेद में 18 प्रकार के वायुयान का उल्लेख है। हमारे ऋषि सूर्य एवं अन्य मंडलों में जा सकते हैं 9 प्रकार के विद्युत का उत्पादन ऋषिगण जानते थे। यजुर्वेद के अनुसार एक ही विद्युत दीप से जो उत्तरी ध्रुव पर बिन्दु सरोवर पर रखा जाता था जो संपूर्ण एशिया में प्रकाश देता था।

(अयुर्वेद आख्यान 17/20)
रामायण काल के पुष्पक विमान की विशेषता-

रामायण में वर्णित है कि रावण के पास कई लड़ाकू विमान थे पुष्पक विमान के निर्माता स्वयं ब्रह्मा जी थे। ब्रह्मा जी ने यह विमान कुबेर को भेंट किया था। रावण ने इस विमान को कुबेर से छीन लिया था। रावण की मृत्यु के बाद पुष्पक विमान विभीषण के आधिपत्य में चला गया। फिर इसे कुबेर को वापस कर दिया। कुबेर ने इसे राम को उपहार में दे दिया। श्री राम लंका विजय के बाद अयोध्या इसी विमान से वापस गए थे।

उल्लेखनीय है कि लंका में लड़ाकू विमानों की व्यवस्था प्रहस्त के सुपुर्द थी। यानो में ईंधन की व्यवस्था प्रहस्त ही करता था। लंका में सूरजमुखी के फूलों से तेल (पेट्रोल) निकाला जाता था। अब भारत में भी जेट्रोफा से पेट्रोल निकालने का कार्य हो रहा है।

बाल्मीकि रामायण के अनुसार पुष्पक विमान मोर जैसी आकृति का आकाशचारी विमान था जो अग्नि-वायु की समन्वयी ऊर्जा से चलता था। इसे छोटा-बड़ा भी किया जा सकता था। यह सभी में वातानुकूलित था। इसमें स्वर्ण खंभमणि निर्मित दरवाजे, सीढ़ियां, बेदियां (आसन), गुदा गृह, अट्टालिकाएं (केबिन) तथा नीलम से जड़े सिंहासन (कुर्सियां) थी। यह विमान अनेक प्रकार के चित्र एवं जालियों से सुसज्जित था। यह दिन और रात दोनों समय गतिमान रहने में समर्थ था। तकनीकी दृष्टि से पुष्पक विमान में इतनी खूबियां जो वर्तमान में नहीं होते हैं।
ताजा वैज्ञानिक शोधां से पता चला है कि यदि उस युग का पुष्पक विमान आज आकाश गमन करे तो उनके विद्युत चुंबकीय प्रभाव से मौजूद विद्युत व संचार जैसी व्यवस्थाएं ध्वस्त हो जाएंगी। पुष्पक विमान के बारे में यह भी पता चला है कि वह उसी व्यक्ति से संचालित होता था जिसने विमान संचालन संबंधी मंत्र सिद्ध किया हो यह मंत्र रिमोट की तरह काम करता था।

वैज्ञानिक इसे कम्पन तकनीक (वाइब्रेशन टेक्नोलाजी) का सिद्धांत बताते हैं पुष्पक की एक विशेषता यह भी थी कि वह केवल एक स्थान से दूसरे स्थान तक ही उड़ान नहीं भरता था बल्कि एक ग्रह से दूसरे ग्रह तक आवागमन में सक्षम था यानी यह अंतरिक्ष यान प्रौद्योगिकी से भी मुक्त था। (संदर्भ बाल्मीकि रामायण)

सुदर्शन चक्र- यह ब्रह्मांड का सबसे शक्तिशाली व खतरनाक हथियार था कहते हैं कि सुदर्शन चक्र एक ऐसा अस्त्र था जिसे छोड़ने के बाद यह लक्ष्य का पीछा करता था और उसे तबाह करके मालिक के पास वापस आ जाता था। यह अस्त्र भगवान विष्णु के तर्जनी अंगुली में रहता था। शास्त्रों के अनुसार इसका निर्माण भगवान शिव ने किया था। सुदर्शन चक्र पाने के लिए भगवान विष्णु ने हजारों साल तक भगवान शिव की कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने वरदान मांगने को कहा तब भगवान विष्णु ने एक ऐसा खतरनाक हथियार मांगा जिससे ब्रह्मांड में मौजूद राक्षसों का वध किया जा सके। उसके बाद उन्हें सुदर्शन चक्र प्राप्त हुआ।

पशुपतास्त्र- यह भगवान शिव का अस्त्र है इस हथियार को बहुत विनाशकारी माना जाता था। कहा जाता है कि यह इतना घातक है कि पूरी सृष्टि को यह नष्ट करने की क्षमता रखता था यह तीर के समान होता था इसको चलाने के लिए धनुष का प्रयोग किया जाता है। यह अस्त्र रामायण काल में लक्ष्मण के पास एवं महाभारत काल में अर्जुन के पास था। यह अस्त्र मंत्रों से संधान किया जाता था।यह एक दिव्यास्त्र था इसका प्रयोग ना तो रामायण काल में हुआ ना महाभारत काल में हुआ क्योंकि इसके प्रयोग से पूरी सृष्टि नष्ट हो जाती।

त्रिशूल- यह भगवान शिव का अस्त्र था इसको भगवान शिव अपने साथ हमेशा रखते थे इस हथियार का प्रयोग रामायण और महाभारत दोनों कालों में किया जाता था। यह हिंदू धर्म में आस्था का प्रतीक है।

बज्रास्त्र :- यह देवताओं के राजा इंद्र देव का अस्त्र था यह बहुत खतरनाक अस्त्र था। इसका प्रहार अचूक होता था।
आग्नेयास्त्र- यह मंत्र शक्ति से तैयार एक ऐसा बाण था जो धमाके के साथ आग बरसाता था और अपने लक्ष्य को जलाकर राख कर देता था। यह पर्जन्य बाण के जरिए संभव थी।
पर्जन्य अस्त्र- मंत्र शक्ति से सधे इस बाण से बिना मौसम बादल पैदा होते थे भारी बारिश होती और बिजली कड़कती थी।
गरुड़ अस्त्र- इस अचूक बाण में मंत्रों के आह्वान से गरुण पैदा होते थे जो पन्नग अस्त्र या नागपाश से पैदा सांपों को मार देते थे या उससे जकड़े व्यक्ति को मुक्त करा देते थे।

वायव्य अस्त्र- मंत्र शक्ति से यह बाण इतनी तेज हवा और तूफान उत्पन्न करता था कि चारों ओर अंधेरा हो जाता था।

अन्तर्ध्यान अस्त्र- यह एक प्रकार का महाभारत कालीन अस्त्र था जिसके प्रयोग द्वारा अर्जुन ने स्वयं को ओझल कर लिया था।
नागपाश अस्त्र- बाल्मीकि रामायण के अनुसार मेघनाथ को इंद्रदेव द्वारा नागपाश अस्त्र प्रदान किया गया था। यह एक ढाई फेरे बंधन का अस्त्र था। यह एक नागों का पास या बंधन प्रदान करने वाला अस्त्र था।
रामायण काल भारतीयों के जीवन का वृतांत भर नहीं है इसमें कौटुम्बिक संसारिकता, राष्ट्रीयता, शासन और समाज संचालन के कूट-सूत्र हैं भौतिकवाद और अध्यात्मवाद के बीच संतुलन, षटदर्शन और अनेक वैज्ञानिक उपलब्धियां हैं। बाल्मीकि रामायण में यह सारी बातें समाहित हैं। जो उस काल में प्रचलित थीं।

-डा. त्रिभुवन प्रसाद मिश्र