हे परशुरामजी
त्रेतायुग धारी, रेणुका जमदग्नि सुत
भोलेनाथ के शिष्य, पितु आज्ञाकारी
ग्यानी, ध्यानी,प्रचंड क्रोधी, धनुष बाण,फरसाधारी
महेंद्र पर्वतवासी, भगवान परशुराम जी,
अब जागो, ध्यान से बाहर आओ
अपना रौद्ररूप दिखाओ, क्रोध दिखा
आपे से बाहर आओ, धनुष की टंकार गुँजाओ
फरसे का कमाल दिखाओ।
या फिर जाओ भोले बाबा की शरण में छुप ही जाओ।
आज धरा का हर प्राणी, बेबस, लाचार,असहाय है,
लगता है धरा पर अब कोई नहीं सहाय है,
आज वेदना भरी अनगिनत आँखे
अब आप को ही निहार रही हैं,
बिना कुछ कहे ही आपको, मौन निमंत्रण दे रही हैं।
अब तो जाग जाओ भगवन,
ध्यान छोड़ धरती पर आओ
अपनी क्रोधाग्नि का दर्शन कराओ,
आज कोई लक्ष्मण आपको नहीं चिढ़ायेगा,
न ही कोई राम, आपकी क्रोधाग्नि बुझायेगा।
आज धरा को सचमुच आपकी ही नहीं
अतिक्रोधी परशुराम की जरुरत है।
दिनों दिन कोरोना महामारी पड़ती जा रही भारी है,
मानव कीड़े मकोड़ों की तरह मर रहा है,
मानव अस्तित्व ही नहीं धरती पर जीवन जैसे
विनाश की ओर जा रहा है।
बस ! अब देर न करो
अपने हर जरूरी काम बाद में करो
जल्दी धरा पर आओ अपने क्रोध की ज्वाला
बिना हाँड़ माँस वाले अदृश्य कोरोना पर बरसाओ,
मानव जाति को विनाश होने से बचाओ,
अब इतना जिद भी न दिखाओ
मौन साधना तोड़कर चले आओ,
अब और विचार न करो अपनी जिद का नहीं
भोलेनाथ के सम्मान की लाज धरो।
आप तो पहाड़ो में छिपकर हमसे बहुत दूर हो,
पर Fact ये भी तो विचार करो
जब धरा पर हमारा अस्तित्व ही नहीं होगा,
तब भला आपके गुरु औघड़दानी
भोलेनाथ का रुद्राभिषेक/जलाभिषेक
पूजन, अर्चन आरती भला कौन करेगा?
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा, उ.प्र.
8115285921
©मौलिक, स्वरचित