Wednesday, June 26, 2024
साहित्य जगत

नव सम्बत

साक्षी विक्रम संवत के प्रथम मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि के वेद पुराण कहलाए जो प्रतिपदा ।
प्रथम राष्ट्र परमपिता ने किया था निर्मित कहलाया भारत महान।
है धरा यही जहां प्रथम नयन खोल मानव ने ली अंगड़ाई।
है साक्षी सूर्य की गति ऋतुओं के आभासी परिवर्तन की,
सारे जग में होता नव रस संचार।
वनस्पतियां त्यागे पुराने वसन,
करती धारण नव वसन। कहलाए यह काल नवरसा।
चहुंओर छायी हरितिमा की
मनमोहक आभा।
कहते इस कल को बसंत कुसुमाकर भी ।
अथर्वेद में मिलता सुंदर अलंकारिक वर्णन नवसंवत्सर महान का।
महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा
आंध्रप्रदेश तेलंगाना में कहलाता उगादी।
नव संवत्सर आने को है, सज गए द्वार बंध गए तोरण द्वारे- द्वारे।
नव दीप जलाएं आओ मिलकर।
नव कलेवर में धरा सज के देखो बनी दुल्हन। शुभता के हर पलछिन, मां आयी जग हर्षाया ।
गुंजेगा जयकारा चहुंओर।
मां भरती झोली होके दयाल।
मां करती कृपा अतिकाए।
चलो अराधे माता के पावन
नौ रूप ।
कर वंदन अर्चन पाये शेरावाली का शुभ आशीष।
नौ दिवस अंबे रानी के चरणों
में शीश नवाएं।
मां विराजे अपने धाम।
भक्त पुकारे मां का पावन नाम।
चलते-चलते आए मां के धाम।
मां की महिमा अपरंपार।
मां के दरबार शीश झुकाए सारा जहान ।

स्वरचित
शब्द मेरे मीत
डाक्टर महिमा सिंह