Saturday, May 18, 2024
शिक्षा

प्राचीन भारत के प्रमुख शिक्षा केन्द्रों का वर्णन कीजिए। ■इतिहास■ (सिद्धार्थ विश्वविद्यालय

तक्षशिला प्राचीन भारत का तक्षशिला नामक शिक्षा केन्द्र वर्तमान पाकिस्तान के रावलपिण्डी से 20 मील दूर स्थित था। यह अत्यन्त प्राचीन शिक्षा केन्द्र था। रामायण के अनुसार इसकी स्थापना भरत ने की थी और इसका नामकरण अपने पुत्र तक्ष के नाम पर किया था। राजनीतिक दृष्टि से यह स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण था। कुषाण वंशीय कनिष्क का यह शासन केन्द्र था। शिक्षा की दृष्टि से यह सारे भारत में विख्यात था। सारे देश से शिक्षार्थियों का यहां आना होता है। वास्तव में तक्षशिला को विश्वविद्यालय की संज्ञा दी जाती है। लेकिन वास्तविकता यह थी कि यहां कोई आवासीय या विद्यालय जैसी कोई स्थिति नहीं थी। तक्षशिला के इस उच्च शिक्षा के केन्द्र में अध्यापक अपने-अपने घरों पर ही अध्यापन कार्य किया करते थे। यह पूरा नगर ही ऐसे अध्यापकों से भरा पड़ा था। ये सभी अध्यापक व्यक्तिगत रूप से शिक्षा देते थे। शासन से इनका कोई सम्बन्ध नहीं था और न ही शासन से ये संचालित ही थे। सम्पूर्ण नगर ही एक प्रकार से विद्यालय था जैसे कि काशी में था। विद्यार्थी भी अध्यापकों के साथ उनके घरों में रहते थे। एक से अधिक विषयों की शिक्षा भी एक अध्यापक के यहां रहते हुए प्राप्त किया जा सकता। जातकों से ज्ञात है कि मात्र सम्पन्न विद्यार्थी ही अपना स्वतंत्र आवास लेकर शिक्षा ग्रहण करते थे।

प्राचीन भारत के इस महान कला केन्द्र में वेद, व्याकरण, साहित्य, दर्शन आदि समस्त विषयों की पढ़ाई होती थी। विभिन्न प्रकार की कलाओं, ललित कला, राजनीति, युद्धकला, वास्तु आदि की शिक्षा लेने विद्यार्थी दूर-दूर से आते थे। जातकों से और अन्य बौद्ध ग्रन्थों से ज्ञात है कि मगध, कोशल, कुशीनारा आदि स्थलों से राजकुमार राजनीति, कूटनीति और शस्त्र, अस्त्र संचालन की शिक्षा के लिए यहां आए। विदेशियों के बहुतायत आक्रमणों का सामना करने वाले इस शिक्षा केन्द्र पर विदेशी प्रभाव भी पड़ा। यहां ब्राह्मी लिपि के साथ-साथ विदेशी, खरोष्ठी लिपि भी पढ़ाई जाती थी। इसके अतिरिक्त यूनानी, इरानी आदि भाषाओं, वहां की कलाओं, वहां की विविध प्रकार के साहित्य आदि का भी अध्ययन वहां के विद्वानों द्वारा किया गया। यहां विविध प्रकार के व्यवसायों सहित चिकित्सा सम्बन्धी शिक्षा भी दी जाती थी। बुद्धयुगीन महान वैद्य जीवक ने यहीं शिक्षा प्राप्त की थी। यहां से निकलने वाले विद्यार्थियों ने सारे देश में अपना और इस शिक्षा केन्द्र का नाम रोशन किया। इसी शिक्षा केन्द्र से महान अर्थशास्त्री, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, विद्वान चाणक्य या कौटिल्य ने भी शिक्षा प्राप्त की थी। कौटिल्य यहां बहुत दिनों तक यहां अध्यापन कार्य भी करते रहे। यहीं से प्रसेनजीत जैसे नरेशों ने राजनीति की शिक्षा ली। बौद्ध ग्रन्थों से ज्ञात है कि कुशीनारा के मल्ल राजकुमार ने यहीं से शिक्षा ग्रहण किया था। इस महान शिक्षा केन्द्र की ख्याति एक हजार वर्ष से भी अधिक दिनों तक रही। यह हमें 7वी शती ई० पू० से लेकर 5वीं शती ई० तक एक ख्याति प्राप्त शिक्षा के रूप में दिखाई देता है।