Tuesday, July 2, 2024
साहित्य जगत

त्यौहारो की रौनकें सजे हर बार…..

यूं ही त्यौहारो की रौनकें सजे हर बार ,
खुशियों के सिलसिले बस यूं ही चलते रहे ।
यू ही महफिलो के हंसी दौर चलते रहे,
हम यूं ही मिलते मिलाते रहे..।
बढे़ और सजे ये दोस्ती हमारी ,
गुनगुनाऐ दिल हमारे कभी ना भूलने वाले इन पलों का सुरीला गान ।
ना झुके ना झुकाए किसी को, न गिरे ना गिराए किसी को। ना खेले किसी के नाम और काम से ,
करें एक दूजे का सच्चा सहयोग ।
है नारी अलौकिक कृति उस परम शक्ति की ,
आओ पहचाने एक दूजे को सच्चे अर्थो मे।
किसी का हृदय ना दु:खे,
ना छोड़ें किसी को भी अकेले,
ये प्रयास तो सखी कर ही सकते हैं।
ले नही सकता कोई भी किसी और का स्थान,
जो तुम हो वो तुम और जो हम है वो हम ही रहेंगे।
फिर है ये कैसी प्रतियोगिता, है ये जलन कैसी,
सखी तू बन इन्द्रधनुष सी ,
जो संगंम क ई रंगों का। निखरता बिखेरता अनुपम छटा जब मिलते सभी सात रंग संग साथ मे।
है वही सच्चा महिला दिवस जब हम दे बधाई हृदय से ,
जो हो पारर्दशी जल सा,
ना की दर्पण सा ।
कि दिखे केवल खुद की छवि।
आओ मिलकर जग को सुदंर बनाये।
महिमा की बधाई कर लो स्वीकार !
ससम्मान महिला दिवस की
शुभकामनाएं ।
रंगोत्सव की शुभकामनाएं ।

स्वरचित
शब्द मेरे मीत
डाक्टर महिमा सिंह