Saturday, May 18, 2024
साहित्य जगत

शुभ होली

ईश्वर को पल-पल वन्दन है, दुनिया तो रीति से चलती है।
संसार के बगिया में रंगत है, जुदा-जुदा बू अलग ही है ।
कोई इंसा देवता जैसा है, कोई इंसा राक्षस जैसा क्यों ।
कोई हिरणाकश्यप बनकर ही संसार कंलकित करता है।

हिरणा ने पत्नी-बेटे को अपना सा बनाना चाहा है।
वरदान मिला था हिरणा को तू कभी नहीं मर सकता है।
आकाश में भी धरती पर भी घर कोना बाहर कहीं नहीं।
कोई अस्त्र नहीं, कोई शस्त्र नहीं तेरे लिए न यमराज ही है।

जांघो पर बिठा कर नरसिंह विष्णु राक्षस का सीना चिणा है ।
प्रहलाद खुद जलकर को होलिका बूआ ने धोखे जलाना चाहा है।
राख वह हो बैठी, प्रहलाद बचाये नारायण ।
तब से ही जमाने वालों ने होली उत्सव सा मनाया है।

सतरंगी रंग के रंगत में हर दिल खुशियों से भरता है।
कोई लाल, हरा, पीला, नीला हर रंग में चेहरे दिखते हैं।
खोये से भरी गुझिया खाकर हर एक गले मिलते है यूँ ।
हर अपना है, कोई गैर नहीं सीने से लिपटते रहते है।

फाल्गुन मे भँवरे मडँराते वृंदावन सजता फूलों से है ।
बृज बरसाने की मस्ती में राधा कृष्णा रंग खेलें है। मधुमास की लट्ठमार होली है त्यौहार में प्रचलन इसका है।
रास आई शबीहा को होली से खुशियों से दिल भर जाता है।

शबीहा खातून
(अर्थशास्त्र प्रवक्ता )
बेगम खैर गर्ल्स इण्टर कालेज-बस्ती(उ०प्र०)
फो० 8299345819