Monday, July 1, 2024
बस्ती मण्डल

रामलीला में धनुष यज्ञ के बाद श्रीराम विवाह की धूम

बस्ती । सनातन धर्मी संस्था और श्री रामलीला महोत्सव आयोजन समिति की ओर से अटल बिहारी वाजपेई प्रेक्षागृह में चल रहे श्रीराम लीला के चौथे दिन जनक प्रतिज्ञा, धनुष यज्ञ, सीता स्वयंवर, परशुराम लक्ष्मण संवाद, राम जानकी विवाह और विदाई का मंचन हुआ। धनुषधारी आदर्श रामलीला समिति अयोध्या के कलाकारों ने धनुष भंग करने के दृश्य को प्रस्तुत कर दर्शकों से खूब तालियां बटोरी। लीला का मंचन जनक प्रतिज्ञा के दृश्य से शुरू होता है। इसी में धनुष यज्ञ का चित्रण किया गया।
व्यास कृष्ण मोहन पाण्डेय ने बताया कि शिव का धनुष जहाज है और राम का बल समुद्र है। धनुष टूटने से सारा समाज डूब गया। जो मोहवश इस जहाज पर चढ़े थे। शिव धनुष टूटते ही देवांगनाएं नृत्य करने लगीं। लोग रंग बिरंगे फूल बरसा रहे थे। किन्नर रसीले गीत गा रहे थे। सभी हर्षित नजर आ रहे थे। इस प्रसंग में सीता जी, महल में रखे शिवजी के धनुष को एक पुष्प की भांति एक स्थान से दूसरे सथान पर रख देती हैं, जिसको देखकर राजा जनक यह प्रतिज्ञा लेते हैं कि जो कोई भी इस धनुष को तोड़ेगा, सीता का विवाह वह उससे करेंगे।
रामलीला के अगले क्रम में धनुष यज्ञ लीला हुई, जिसमे जनक प्रतिज्ञा के अनुसार महल में धनुष यज्ञ का आयोजन करते हैं जहां पर तमाम सुदूरवर्ती क्षेत्रों से आए राजा-महाराजा भाग लेते हैं और सभी धनुष को उठाने का प्रयास करते हैं लेकिन कोई भी धनुष को तोड़ने के बजाए उठाने में ही अक्षम साबित होते हैं। महल में ऐसा दृश्य सृजित हो जाता है कि सभी लोग कहते हैं कि धनुष का क्या होगा। तभी गुरू विश्वामित्र राम को आदेश देते हैं कि वह उस धनुष की प्रत्यंचा चढ़ायें।
गुरू की आज्ञा पाकर राम, शिव जी के धनुष को हाथ से उठाकर जैसे ही प्रत्यंचा चढाते हैं वैसे ही सारे लोग हतप्रभ हो जाते हैं प्रत्यंचा चढ़ाते ही राम से धनुष टूट जाता है। धनुष टूटने की आवाज आकाश में गूंजती है वैसे ही महल में परशुराम गरजते हुए महल में पहुंचते हैं और क्रोध में कहते हैं कि भगवान शिव के इस धनुष को किसने तोड़ा है, कौन है यह दुःसाहसी। परशुराम के इस वचन को सुनकर लक्ष्मण बड़े आवेग में आकर कहते हैं कि आपकी कैसी हिम्मत हुई ऐसा कहने कि इस धनुष को किसने तोड़ा। तभी परशुराम और लक्ष्मण में काफी वाद-विवाद होता है और आखिर में परशुराम को समझ में आ जाता है कि धनुष को किसने और क्यो तोड़ा है। इसी के साथ परशुराम लक्ष्मण संवाद प्रसंग का समापन होता है।
परशुराम लक्ष्मण संवाद के बाद राम जानकी विवाह व विदाई हुई। इस प्रसंग में राम और सीता के विवाह की तैयारियां शुरू हो जाती हैं और भगवान राम के गले में सीता जी वर माला डालती हैं तभी आकाश से सभी देवतागण पुष्प वर्षा करते हैं और इसी के साथ राजा जनक की अन्य तीनों पुत्रियों का विवाह भी क्रमशः लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के साथ हो जाता है। विवाह के उपरान्त सीता जी विदा होकर अयोध्या की ओर प्रस्थान करती हैं। यहीं इस लीला का सुखद् मंचन होता है। इस मौके पर भगवान विष्णु की दशावतार लीला के तहत मत्सय के अवतार की भी लीला मंचन ने दर्शकों का मन मोह लिया।
विश्वामित्र की भूमिका में अरविन्द मिश्र, जनक की भूमिका में शिव बहादुर, श्रीराम की भूमिका में ज्ञान चन्द्र पाण्डेय, लक्ष्मण की भूमिका में राजा बाबू और माता सीता की भूमिका में मोनू पाण्डेय, परशुराम की भूमिका में उमेश झां ने मंच पर श्रीराम लीला को जीवन्त किया।
श्रीराम दरबार आरती, प्रार्थना से आरम्भ श्रीराम लीला में वृजेश सिंह मुन्ना ने श्रीराम लीला और विविध प्रसंगों पर अपने विचार रखे। संचालन पंकज त्रिपाठी ने किया। दर्शकों में मुख्य रूप से शत्रुघ्न प्रसाद दूबे, अमित सिंह, आई.डी. पाण्डेय, अखिलेश दूबे, दिनेश दुबे, रोहन दुबे, अरूण श्रीवास्तव, अभिषेक मणि त्रिपाठी, सुभाष शुक्ल, आशीष शुक्ल, राम विनय पाण्डेय, डा. वीरेन्द्र त्रिपाठी, प्रशान्त पाण्डेय, रमेश सिंह, योगेश शुक्ल, सन्तोष पाल, अंकित त्रिपाठी, अमन, अभय, पवन, जॉन पाण्डेय, नीतेश शर्मा, अविनाश मिश्रा आदि उपस्थित रहे।