Tuesday, July 2, 2024
बस्ती मण्डल

यूं ही नही कबीर की धरती के कोहिनूर बने डा उदय प्रताप चतुर्वेदी, सफलता और बुलंदी के पीछे है 20 बर्षों का लंबा जुनून भरा संघर्ष

संतकबीरनगर। जितेन्द्र पाठक।निखरे व्यक्तित्व और चमकते भविष्य के पीछे संघर्षों की अपनी अलग ही दास्तां छिपी होती है। दौर या प्रोफेशन कोई भी हो लेकिन सफलता के शिखर पर सुशोभित हर शख्सियत के गमकते लिबास को नजीर बनाने से पहले यदि समाज का संघर्षरत युवा ऐसे चरागों की के संघर्षों, जुनूनी हौसलों और कर्तव्यनिष्ठा को फाॅलो करें तो हमारे समाज का संघर्षशील युवा समाज खुद के साथ ही समाज को भी बेहतर मुकाम पर पहुंचा सकता है। जी हां अपनी काबिलियत, जुनून, संवेदनशीलता और संघर्ष की बदौलत कबीर की धरती के युवा सिरमौर डा उदय प्रताप चतुर्वेदी के संघर्षों की दास्ताँ भी बड़ी लंबी है। 90 के दशक मे क्षेत्र को शैक्षणिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत बनाने मे जूझ रहे पिता स्व पं सूर्य नारायण चतुर्वेदी ही इनके सफल जीवन के प्रेरणाश्रोत रहे। कर्तव्यनिष्ठा और संघर्ष की सीख इन्हें पिता से ही मिली। बर्ष 2000 मे खुद की कठिन परिश्रम और विपरीत परिस्थितियों से जूझने की क्षमता को परखने के लिए डा उदय प्रताप ने शिक्षण संस्थान तैयार करके उन्हें निखारने और संवारने का जिम्मा अपने ऊपर ले लिया। कार्यक्षेत्र बढ़ाने का अपना दृढ निश्चय जब परिवार के सामने रखा तो पिता ने भी इन राहों मे बिखरे अंजान कांटों का जिक्र करके उनके कम उम्र और अनुभव की कमी का हवाला देते हुए उन्हे समय का इन्तजार करने की सलाह दिया। पिता द्वारा सुझाए गये विपरीत परिस्थितियों को ही अपने दृढ़ता को पूरा करने का हथियार बनाने का संकल्प लेकर कार्यक्षेत्र के कुरुक्षेत्र मे कूद पड़े। डा चतुर्वेदी से जुड़े तब के करीबियों की माने तो अपने जुनून को पूरा करने के लिए वयस्क जीवन मे प्रवेश किये इस युवा ने न रात देखा न दिन सिर्फ जूझना ही शुरू किया। उम्र के उस पड़ाव पर जब युवा अपने जीवन की रंगीनियों मे खोये रहते हैं तब डा उदय प्रताप चतुर्वेदी ने गोरखपुर विश्वविद्यालय प्रशासन से लगायत राजधानी के गलियारों मे अपने सफलता की इबारत लिख रहे थे। इस युवा के चेहरे पर जुनून और आंखों मे कुछ कर गुजरने की ज्वाला देख जिम्मेदार अधिकारियों ने भी उनके प्रस्तावों पर तवज्जो देना शुरू कर दिया। चन्द सालों मे ही डा उदय अपने गुरू तुल्य पिता के साथ कदमताल करना शुरू कर दिया। जब कुछ विरोधियों ने डुमरी स्थित महाविद्यालय की शैक्षणिक गुणवत्ता पर सवाल उठाया तो डा उदय ने चन्द सत्रों मे ही डुमरी महाविद्यालय मे शिक्षण कार्य का पैमाना इतना ऊंचा बनाया कि जिले और जिले के बाहर भी इस महाविद्यालय की ख्याति पहुंचने लगी। डा उदय की कर्तव्यनिष्ठा देख परिवार का भरोसा भी बढता गया। इसी का परिणाम हुआ कि कबीर की धरती को मां सरस्वती के आंचल मे लिपटाने के बाद आचार्य रामचंद्र शुक्ल पर भी शिक्षा की ज्योति प्रज्जवलित करने लगे। जिला मुख्यालय पर जब सूर्या संस्थान की स्थापना किया तो इस युवा के जज्बे और जुनून से अनभिज्ञ कथित बुद्धिजीवी समाज ने उन्हें बेहद हल्के मे लिया। तमाम तर्कों और कुतर्को के शब्दभेदी बांणों को हवा मे उछालते हुए उन्होंने पिता के आशीर्वाद से न सिर्फ सूर्या का संचालन शुरू किया बल्कि सूर्या संस्थान को सीबीएसई पैटर्न मे जिले का सरताज बना कर विरोधियों को करारा जवाब भी दिया। यूं तो समाज मे गरीब और जरूरतमंद तबके की चतुर्वेदी परिवार पहले से ही मददगार रहा लेकिन कोरोना लाकडाउन के चलते जब गरीब तबका बिलख उठा तो डा उदय प्रताप चतुर्वेदी की संवेदनशीलता भी चित्कार उठी। कोरोना के भय से जब जिले के सूरमा वातानुकूलित कमरों मे कैद हो गये तो डा उदय ने खुद को खतरों डाल भरी दोपहरी मे गरीब बस्ती की खाक छानना शुरू कर दिया। अपनी कर्तव्यनिष्ठा, संवेदनशीलता और जुनून की बदौलत देखते ही देखते यह युवा कबीर की मिट्टी का सरताज बन बैठा। समाज मे अपने वजूद को स्थापित करने के लिए विपरीत परिस्थितियों से जद्दोजहद करने वाले युवा वर्ग को डा उदय प्रताप चतुर्वेदी के 20 बर्षों के संघर्षों को अपनी सफलता का नजीर बनाना होगा। वैसे भी अपनों के लिए खुद को क़ुर्बान करने की डा उदय प्रताप चतुर्वेदी इच्छाशक्ति को उनसे जुड़ा हर शख्स भलीभांति जानता है। फिर भी उनके मुकाम तक पहुंचने की आस पाले युवा समाज को उनके तपे तपाये संघर्षों को आत्मसात् करके समाज को आगे बढाने का संकल्प लेना चाहिए।