Sunday, May 19, 2024
हेल्थ

टीबी मरीजों की खोज व इलाज में मीडिया की अहम भूमिका -सीएमओ

गोरखपुर। टीबी के लक्षणों की समय से पहचान न हो पाना और लक्षण के बावजूद सामाजिक भेदभाव के भय से जांच व इलाज के लिए मरीज का आगे न आना सबसे बड़ी चुनौती हैं । ऐसे हालात में मीडिया के माध्यम से भी टीबी के लक्षणों के बारे में विस्तार से जानकारी दी जाती है और लोगों तक यह संदेश पहुंचाया जाता है कि टीबी का पूरी तरह इलाज संभव है । सावधानी बरतते हुए टीबी मरीज के साथ रहा भी जा सकता है । इन संदेशों का असर यह है कि नये टीबी मरीजों को खोज कर इलाज देना आसान हो जाता है । इस तरह क्षय उन्मूलन का सपना साकार करने में मीडिया की अहम भूमिका है ।

यह बातें मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दूबे ने जिला क्षय रोग इकाई के तत्वावधान में सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च (सीफार) के सहयोग से शुक्रवार को आयोजित मीडिया संवेदीकरण कार्यशाला के दौरान कहीं । कार्यशाला में मीडियाकर्मियों को क्षय उन्मूलन में योगदान की शपथ दिलाई गई। इसके साथ ही समुदाय तक यह संदेश पहुंचाने की अपील की गई कि टीबी की समस्त जांच, इलाज और अन्य सेवाएं सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली में उपलब्ध हैं । ऐसे में अगर टीबी के लक्षण दिखें तो त्वरित जांच कराएं। टीबी मरीजों को ढूंढने के लिए ही सक्रिय क्षय रोग खोजी (एसीएफ) अभियान के तहत आजसे पांच मार्च तक आशा, एएनएम और स्वयंसेवक की टीम घर घर जाएंगी । कार्यशाला से पहले सीएमओ ने मुख्य चिकित्सा अधिकारी कार्यालय से एसीएफ कैम्पेन सम्बन्धित जनजागरूकता वैन को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया ।

मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि वर्ष 2020 में भारत विश्व के टीबी का 26 फीसदी बोझ वाला देश रहा है । देश के 21.2 फीसदी टीबी रोगी अकेले उत्तर प्रदेश में हैं । ऐसे में हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। सामाजिक भेदभाव, जागरूकता का अभाव, गरीबी और टीबी के लम्बे समय तक चलने वाले इलाज जैसी बाधाएं क्षय उन्मूलन की राह को कठिन बनाती हैं | संचार एक ऐसा सशक्त माध्यम है जो इस कार्य को सरल बनाता है । जनपद में मीडिया ने क्षय उन्मूलन कार्यक्रम को जन – जन तक पहुंचाने में सराहनीय भूमिका निभाई है जिसका असर है कि टीबी नोटिफिकेशन में जिले की स्थिति अच्छी है । बीते वर्ष में लक्ष्य के सापेक्ष 98 फीसदी टीबी नोटिफिकेशन हुआ है।

जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ गणेश प्रसाद यादव ने बताया कि अगर दो सप्ताह तक लगातार खांसी आ रही है तो यह टीबी भी हो सकता है । रात में पसीने के साथ बुखार आना, वजन घटना, भूख न लगना और सांस फूलना जैसे लक्षण फेफड़े की टीबी में नजर आते हैं। फेफड़े की टीबी ही संक्रामक होती है और एक से दूसरे व्यक्ति में इसका प्रसार खांसने व छींकने के से निकलने वाली बूंदों के सम्पर्क में आने से होता है । इन लक्षणों के आधार पर टीबी की जांच करवा कर समय से इलाज शुरू कर देने से यह छह माह में ही ठीक हो जाती है । समय से जांच व इलाज न होने से यह ड्रग रेसिस्टेंट टीबी का रूप ले लेती है जिसका इलाज ज्यादा समय तक चलता है । टीबी की पुष्टि होने पर ड्रग रजिस्टेंट की स्थिति, एचआईवी और मधुमेह की जांच भी कराई जाती है । पूरे परिवार की स्क्रीनिंग कर बचाव की दवा दी जाती है । खाता विवरण लेकर मरीज को इलाज चलने तक प्रति माह पांच सौ रुपये भी दिये जाते हैं | नया मरीज खोजने में मददगार चिकित्सक और नागरिकों को 500 रुपये देने का भी प्रावधान है । उन्होंने बताया कि जिले में पांच मार्च तक प्रस्तावित अभियान के दौरान 9.77 लाख लोगों के बीच टीबी मरीज ढूंढे जाएंगे। इसके लिए 429 टीम बनाई गई हैं जिनमें 1287 सदस्य हैं । अभियान का पहला चरण 20 फरवरी से 23 फरवरी तक चलाया गया जिसमें वृद्धाश्रम, संरक्षण गृह, जेल आदि में टीबी मरीजों के लिए स्क्रीनिंग की गई ।

उप जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ विराट स्वरूप श्रीवास्तव ने बताया कि वैश्विक स्तर पर 2030 तक क्षय उन्मूलन का लक्ष्य रखा गया है लेकिन देश के प्रधानमंत्री के साथ देशवासियों ने संकल्प लिया है कि वर्ष 2025 तक टीबी को ख़त्म करना है । यह कार्य सामुदायिक और प्रभावशाली लोगों के सहयोग से ही संभव है। यही वजह है कि निक्षय मित्र के तौर पर लोगों को क्षय उन्मूलन अभियान से जोड़ा जा रहा है । कोई भी व्यक्ति स्वेच्छा से पंजीकरण करवा कर निक्षय मित्र बन सकता है और टीबी मरीज को गोद लेकर उसे पोषण देते हुए मानसिक सम्बल प्रदान कर सकता है । टीबी मरीजों को सामाजिक सहायता योजनाओं से जोड़ने में भी निक्षय मित्र की अहम भूमिका है। निक्षय मित्र को समय – समय पर सम्मानित भी किया जाता है । निक्षय मित्र को टीबी मरीजों की गोपनीयता का ध्यान रखते हुए मदद करनी है ।

कार्यक्रम का संचालन पीपीएम समन्वयक अभय नारायण मिश्र ने किया। विषय प्रवर्तन सीफार के क्षेत्रीय समन्वयक वेद प्रकाश पाठक ने और धन्यवाद ज्ञापन एनएचएम के जिला कार्यक्रम प्रबन्धक पंकज आनंद ने किया। इस अवसर पर एसीएमओ डॉ नंद कुमार, डीएचईआईओ केएन बरनवाल, डीडीएचआईओ सुनीता पटेल, एआरओ केपी शुक्ला, जेई एईएस कंसल्टेंट डॉ सिद्धेश्वरी, डीपीसी धर्मवीर प्रताप सिंह, ड्रिस्ट्रिक्ट लेप्रेसी कंसल्टेंट डॉ भोला गुप्ता, पीपीएम समन्वयक मिर्जा आफताब बेग, टीबी इकाई से एमएस सिंह, राघवेंद्र तिवारी, कमलेश्वर गुप्ता, राजकुमार वर्ल्ड विजन इंडिया, जीत, पीपीएसए और सीफार के प्रतिनिधिगण भी मौजूद रहे । कार्यशाला के दौरान मीडिया की तरफ से सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में सुधार का सुझाव भी दिया गया।