Saturday, May 18, 2024
बस्ती मण्डल

पनचनदा क्षेत्र ब्रह्मांड व्यापी दिव्य चेतना का अवतरण केंद्र है महाराज धर्मदास जी

जगम्मनपुर/जालौन। मुख्यालय से लगभग 65 किलोमीटर की दूरी पर औरैया तथा इटावा एवं भिण्ड की सीमा पर बसा प्राचीन जगम्मनपुर के समीपस्थ पनचनदा का इतिहास हजारों वर्षों से अधिक का है वैसे देखा जाए तो यहां पर दर्जनों मंदिर हैं उन मंदिरों को लोकभारती पहले ही अपने अंक में प्रकाशित कर चुका है लेकिन इस मंदिर के बारे में जो प्रकाशित करने जा रहा है वह सब से पृथक है पौराणिक शिवालय मंदिर में मानव की बेहतर जीवन जीने का सार छुपा हुआ है यहां पर एक श्री १०८ महान परमहंस संत धर्मदास जी महाराज इनकी तपस्या देख कर लोग अपने दांतों तले अंगुली दवा लेने को वरवर विवस हो जाते हैं इनके दर्शनों के लिए दिन भर लोगों का तांता लगा रहता है
बताते चलें कि फरवरी माह से जून तक तपती धूप में अपने चारों ओर उपले जलाकर उसके बीच में बैठ कर अनाबर्त पांच घंटे तपस्यारत रहते हैं
और इनके प्रसाद में कद्दू लोकी खीरा चाय दूध मठ्ठा आदि सेवन करते हैं
कहते हैं कि आध्यात्मिक जीवन में श्रद्धा की शक्ति ही सर्वोपरि है यह श्रद्धा निर्जीव पाषाण की प्रतिमाओं में भी प्राण भर देती है मीरा ने कृष्ण की प्रतिमा में अपनी श्रद्धा के बल पर इतना सजीव बना लिया था
उन्होंने बताया पचनदा क्षेत्र एक समय ऋषि मुनियों की तपो भूमि मानी जाती थी उच्च आध्यात्मिक प्रयोग अनादि काल से यहां होते रहे हैं
अभी भी इस क्षेत्र में सारी सूक्ष्म विशेषताएं प्रचुर परिणाम में विद्यमान है आत्म साधना के लिए पचनद क्षेत्र विशेष है यहां पांच नदियों का संगम है
महाराज धर्मदास जी ने बताया अपने चारों ओर उपलों की आग जलाकर उसके बीच में बैठकर फिर 5 घंटे तपस्यारत रहकर जो अनुभूति प्राप्त होती है उसे शब्दों में बयां करना हर किसी व्यक्ति के बस की बात नहीं है उस समय आत्मा का परमात्मा से मिलन स्वाभाविक है
उन्होंने बताया यहां पर शिवरात्रि के दिन में व्रत रख कर यहां पर शिव:क्षलग के दर्शन मात्र से ही मोक्ष के द्वार खुल जाते हैं जीवन में ब्रह्मचर्य से सन्यास तक का सफर ,अर्थ ,धर्म, और काम के बाद मोक्ष को प्राप्त करता है आत्मा का परमात्मा के साथ मिलन के संपूर्ण दर्शन मंदिर में प्राप्त हो जाते हैं उन्होंने आगे कहा कि तपस्वीओं के प्राण उनके निवास के इर्द-गिर्द क्षाऐ रहते है एक समय सिंह और गाय ऋषि-मुनियों के आश्रम में प्रेम पूर्वक एक साथ रहा करते थे हिरन तथा दूसरे पशु पक्षी निर्भरता पूर्ण पालतू बन जाते थे ऐसे वातावरण में सहेज ही मानसिक बिक्षोभ शांत होते हैं और साधना का उपयुक्त मन: स्थित स्वत: बन जाती है‌
*इस दृष्टि से पचनद क्षेत्र की महित्ता असंदिग्ध है*