Sunday, June 30, 2024
साहित्य जगत

मुहावरे बड़े काम के।

हमारी हिंदी भाषा के चाहने वाले बहुत सारे हैं आसान भाषा में समझाएं तो मुहावरे समास ,संधि ,अलंकार ,छंद चौपाई ,मुक्तक, आदि सब इसके रिश्तेदार ही तो है जो समय-समय पर इसको परिपूर्ण करते हैं इन्हीं में से मुहावरे भी बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
मुहावरे हमारे जीवन के हर पहलू से जुड़े हुए है। लगभग हर परिस्थिति के लिए कोई न कोई मुहावरा सटीक बैठता है। वर्तमान समय में इसका प्रयोग थोड़ा अल्प मात्रा में दिखता है’ ! परन्तु हम तो बचपन से ही इन्हें सुनते आए है। क्योंकि कभी कोई व्यंग करना चाहता तो इन्हें प्रयोग करता , वही ये भाषा को भी एक नए कलेवर में सजाते है, और उसे और प्रवाहपूर्ण और रुचिकर बनाते हैं। जब भी मैं पढ़ाई कम करती या कोई छोटी मोटी गल्ती कर बैठती तो माँ कहती लगता हैं इसके अक्ल पर पत्थर पड गया है वही हमारी पड़ोसन बिन बुलाए मेहमान की तरह आ टपकती
और अपना राग अलापना शुरू कर देती हर चीज मे वो अपने मुँह मियां मिट्ठू बनने लगती ।
तभी दादी बोल पड़ती हवाई किले बनाना बंद करो कुछ मेहनत करके जमीन आसमान एक करोगी तभी अच्छा परीक्षाफल आएगा। जैसे ही गणित का प्रश्नपत्र हाथ आता दिन मे तारें दिखायी देने लगते बस यही मन करता कि सिर पर पाव रखकर भाग जाऊँ।मगर जब ओखली मे सिर दिया
तो फिर मूसल से क्या डरना। जीवन की भागदौड़ से लेकर खट्टे मीठे पलो के लिए सटीक मुहावरे हमे मिल ही जाएंगे ।
विज्ञान वर्ग वाले कला वर्ग वालों से कहते तुम विज्ञान पढ़े ही नहीं हो बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद तो हम भी हंसकर कह उठते सावन के अंधे को हर जगह हरियाली ही नजर आती है चांद तो हर कोई छूना चाहता है मगर सीढ़ी एक-एक करके ही चढ़ने से सफलता आपके कदम चूमेगी। बाबा कहते थे होर हान बिरवान के होत चिकने पात बहुत पारखी नजर होती थी हमारे बुजुर्गों की वह झट सब कुछ भांप लेते थे कहते थे ऐसे ही नहीं बाल सफेद किया है धूप में।
मगर युवावस्था में अपनी अपनी डफली अपना अपना राग। बस कोई रोके टोके ना अपने मनमर्जी का करने को मिले तभी तो कुछ ऐसा कर जाओ तो सब कहते थे अरे आज सूरज किधर से निकला है माता पिता जी से पैसे ले लिए हो तो कितना जतन करना पड़ता अंत में पिताजी कहते तुम्हारी दाल यहां नहीं गलेगी कोई और रास्ता देखो। दोस्तों का जीवन में बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान होता है अच्छे दोस्त मिल गए तो जीवन संवर जाता है यदि बुरे मिल गए तो दलदल में पैर धंस जाते हैं,
ऐसे में कुछ लोग एकदम छुपे रुस्तम होते हैं ।उनका तो वही हॉल कि हाथी के एक दांत खाने के एक दिखाने के।
चलिए हाथ कंगन को आरसी क्या ?
चलिए अब अगर आपने मुहावरे नहीं पढ़े हैं तो अंगूर खट्टा है आपके लिए। तो फिर देर किस बात की अपना सिक्का जमाना है तो पढ़ डालिए मुहावरे और आजकल करना बंद करिए। जिंदगी के आलोचक भी नहीं रहे इसीलिए मुहावरे भी दम तोड़ रहे हैं रिश्तों की ही तरह क्योंकि आजकल सबके मुंह में राम बगल में छुरी है भ इया अपनी अपनी डफ़ली अपना अपना राग और फिर आजकल तो यह भी नहीं पता चलता की कौन अपना कौन पराया क्या पता जो आपका जिगरी दोस्त हैं वहीं आस्तीन का सांप निकले।

स्वलिखित मौलिक लेख
डाक्टर महिमा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश