यादे
यादें होती हैं, धरोहर!
जैसे -मां सम्हाल कर
रखती है, हमारे बचपन के
कपड़े और खिलौने।
जैसे -सूरज आश देकर जाता है
कल सुबह आने की,
जैसे -शशि सोलह कलाओं से युक्त
पूर्णिमा की रात लेकर आता है।
जैसे – कलि देख मन
आशान्वित होता है,
उसके खिलने की खुशी को लेकर।
जैसे -कवि दे जाता है
श्रृंगार की नवीनतम उपमाएं।
आर्या सरोज तिवारी आर्यावर्ती
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)