Saturday, July 6, 2024
साहित्य जगत

यादे

यादें होती हैं, धरोहर!
जैसे -मां सम्हाल कर
रखती है, हमारे बचपन के
कपड़े और खिलौने।

जैसे -सूरज आश देकर जाता है
कल सुबह आने की,
जैसे -शशि सोलह कलाओं से युक्त
पूर्णिमा की रात लेकर आता है।

जैसे – कलि देख मन
आशान्वित होता है,
उसके खिलने की खुशी को लेकर।

जैसे -कवि दे जाता है
श्रृंगार की नवीनतम उपमाएं।

आर्या सरोज तिवारी आर्यावर्ती
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)